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ऐ- वतन के वीर ,सपूतों ये तुम्हारे शहादत की तरंग है
जो मेरे इन लबों से नगमा बनकर निकल रही है
उल्फत-ए- वतन बनकर ये हर दिल में समा रही है
हिफाजत -ए- वतन इबादत है देखो ये बता रही है
गौर से सुनो ये नबी की सुन्नत पर तुमको चला रही है
तुम्हारे लहू की बूंदें जो इस सरजमीं पर गिर गई थी
वो वफा की खुशबू बनकर इन फिजाओं में घुल गई है
तुम्हारा नाम आते ही जुबां पर ऐ - शहीद - ए - वतन
मेरी सांसों से निकलती हवाएं इत्र सी महक रही है
जो ये महकता हुआ गुलशन,खुशनुमा सारा चमन है
हर सिम्त जो ये दिलकश हरियालियां दिख रही है
ये तुम्हारे खून से सीची हुई फसल वतन में उग रही है
हमारी आज़ादी तुम्हारे शहादत की खुली निशानी है
इन गिरते हुए झरनों, इन बहती हुई नदियों, इन समुद्रों
में जो बहता पानी है, इनमें तुम्हारे प्यार की रवानी है
तुम्हारे खौलते लहू की तपिश इस दौर पर भी हावी है
तुम्हारी शहादत का जिक्र सुनकर जुल्मत हिल रही है
"हैदर" की नज़रों ने आज एक दिलकश मंज़र देखा है
लफ्जे शहादत आते ही कलम भी अदब से झुक गई है!

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