Image by Bishnu Sarangi from Pixabay 

ज़िन्दगी के सफर में,
धूप चाहे कितनी ही कड़ी क्यों न हो,
वह हमें छाँव दे ही जाता है।

बरसात के मौसम में,
बारिश और तूफ़ान भले अपनी हदें पार कर दें,
वह हमें छत दे ही जाता है।

सर्दी के मौसम में,
ठंड हमें अंदर तक कंपकंपा ही क्यों न दे,
वह हमें गर्मी का एहसास करा ही देता है।

खुद को छाँव,छत और एहसास से दूर,
वो मज़दूर, अपने हिस्से की भी खुशियाँ,
हमें दे ही जाता है।

हाँ जी साहब, वही हमारा मज़दूर,
जो हमारे लिए इमारत खड़ी करता है,
वही मज़दूर, जो हमारी गंदगी को साफ करता है,
हाँ जी, वही मज़दूर,
जो देश की बहती नाली के अंदर डुबकी लगाकर,
कचड़ा बाहर निकालता है।

अजी रुकिए, अभी और भी है....
वही मज़दूर, जो हमारे देश की सड़कें साफ़ करता है,
रोज़ सुबह सूरज की किरणों के साथ झाड़ू लगाता है।

वही मज़दूर जो आपके ऑफिस पहुँचने से पहले,
आपके केबिन को तैयार करता है,
झाड़ू पोंछा मार कर एकदम चका चक कर देता है।

वही मज़दूर जो दिन रात काम कर के भी,
कभी कभी भूखा ही सो जाता है।

वही मज़दूर जो चाह कर भी,
चाट और गोलगप्पे के ठेले को देख भी नहीं पाता है।

वही मज़दूर जो सबकी सुनता है,
पर खुद बेज़ुबान है।

सब का कहना मानता है,
पर खुद के अधिकारों से अंजान है।

जिसकी नज़रों में सबके लिए सम्मान है,
पर सबकी नजरों में अपने लिए दिखता उसे
सिर्फ़ अपमान है।

सलाम उन मज़दूरों को, जिनके होने से
हमारा अस्तित्व और हमारी पहचान है।

खुद की ज़िन्दगी को किश्तों में बाँटकर,
जो देता हमें जीवनदान है।

आइए थोड़ा सा समय निकाल कर,
झुका लें अपना शीश एक बार इनके सामने,
इनकी मेहनत हम सबके लिए वरदान है।

.    .    .

Discus