वह मासूम थी,
दुनिया की नज़रों से अनजान थी.
अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थी,
चुलबुली सी, फुर्तीली सी, नन्ही सी वह गुड़िया,
अपने माता पिता की जान थी.
नाज़ों से पली वह राजकुमारी, घरवालों की खुशियों की चाभी थी.
अपनी नटखट शैतानियों से सबके मन को मोह लेती थी.
स्कूल का उसका पहला दिन था,
नए ड्रेस और नए जूते पहने,
उसके चेहरे पर गज़ब का तेज़ था.
चमकदार कपड़े पहने, हौसला उसका काफी बुलंद था.
पापा संग स्कूटर पर बैठ उड़ने को खुला आसमान तैयार था.
न जाने उस दिन क्या हुआ, ऐसा काला घना बादल छाया,
खुले आसमान से चितकारने और कराहने का शोर आया.
पापा पापा कह उसका गला रुंध गया,
पर पापा पास होकर भी, उनके कानों तक आवाज़ नहीं गया.
स्कूटर किनारे में पड़ा, पापा दूसरे किनारे पर पड़े थे,
बिटिया के वही चमकते कपड़े भी, वहीं कहीं खून से लथपथ गिरे थे.
कुछ जंगली इंसानी भेड़ियों ने, नन्ही परी के पर क़तर दिए,
रौंध दिया उसका जीवन, और निर्वस्त्र कर दिया उसका तन.
एक ही झटके में, छीन गया संसार उसका
निकली थी जो अपना भविष्य निर्माण करने
वर्तमान उसका पूरी तरह से कुचल दिया गया.
कौन कहता है हम आज़ाद नहीं हैं,
इससे बड़ी आज़ादी कहाँ मिलेगी,
चलती फिरती एक गुड़िया को मसलने की आज़ादी यहीं मिलेगी.
अरे हद होती है हैवानियत की, जिस कोख से जन्म लिया,
कम से कम उसकी तो लाज रख लेता,
अपनी नहीं तो अपनी पैदाइश की मान ही कर लेता.
क्या मिला एक नन्हीं सी जान को मार कर?
बड़ा मज़ा आया तुझे, उस फूल को मसल कर.
धूम्रपान करना सेहत के लिए हानिकारक है,
लेकिन एक मासूम को उसी से दाग देना, शायद उसके लिए हितकारक है.
पुलिस, प्रशासन, और हमारा संविधान
निकाल देना फाँसी का फ़रमान.
एक निर्भया को तो सात साल में न्याय मिला.
इस निर्भया को तो बोलने का भी मौका नहीं दिया.
इससे अच्छी आज़ादी कहाँ मिलेगी?