इंसान की लालच इस कदर है बढ़ी,
दुनिया बर्बादी के कगार पर है चढ़ी.
जा रही है अपनी धरा, रोक लो इसे,
कहीं हो न जाये देरी, थाम लो इसे.
बढ़ती है आबादी और घटते पेड़ हैं,
बढ़ता है प्रदुषण और टूटते पौधे हैं,
अम्बार है कचड़ों का, कम होते पशु पक्षी हैं,
गलती हम हैं करते, भुगतती अपनी धरा है.
सुनो साथियों जा रही है अपनी पृथ्वी, रोक लो इसे
कहीं हो न जाये देरी, थाम लो इसे.
माँ के आँचल में पलना है हमें,
करती है वो सृजन हमारा, समझना है सब ने,
नहीं रह सकते उनके बिना, बताना है उन्हें,
मुश्किल हो जाएगी यारा, गर दुःख दिया इन्हें.
चली गयी तो वापिस आएगी नहीं दुबारा,
और चन्द्रमा पर रहना नहीं होगा अभी हमारा,
इसलिए बार बार कह रहे, जा रही है अपनी माँ,
रोक लो इसे, कहीं हो न जाये देरी, थाम लो इसे.
माना तकनीक में आगे बढ़ रहे,
औद्योगिकीकरण में भी झंडे गाड़ रहे,
चंद्रयान की सफलता का भी परचम लहरा रहे,
पर ये क्या, डूबती हुई धरती को बचा भी नहीं पा रहे.
ये कैसी कश्मकश में फँसे हैं हम,
ज़िन्दगी मिली जिससे, उसी के साथ खेल रहे हैं हम
अरे अब तो समझ लो साथियों और सुधर जाओ यारों,
जा रही है अपनी धरोहर, बचा लो इसे
कहीं हो न जाये देरी, थाम लो इसे.