जितना तेरा है, उतना ही मेरा है
ये सूरज जितना तेरा, उतना ही मेरा
ये धरती जितनी तेरी, उतनी ही है मेरी
ये चांद सितारे जितने तेरे, उतने ही हैं मेरे
ये सड़कें जिसपर तू बड़े शान से चलता है
जितना तेरा है, उतना ही मेरा भी है।
ये बाज़ारों में बिकते सामान,
जितने में तू खरीदता है, उतने में मैं भी खरीदती हूं.
जब सब कुछ तेरे जैसे मेरा भी है,
फिर क्यों इज़्ज़त तेरी ज्यादा और मेरी बिलकुल ही नहीं?
कर्मी तो तू भी है, कभी पुलिसकर्मी, तो कभी सरकारी कर्मी
कभी बैंककर्मी, तो कभी सामाजिक कर्मी।
समाज में तुझे रुतबा और इज्ज़त मिलती है,
फिर हमारे लिए क्यूँ सिर्फ गाली ही बचती है?
संवैधानिक अधिकार तो हर किसी के पास है,
लिखित में सबूत भी साथ है,
लेकिन सामाजिक अधिकार की क्यों आस है?
सब बराबर हैं, सब एक हैं, सब एक ही तराजू में है,
क्या ये घटिया सी सोच बकवास नहीं है?
हां, हैं हम यौनकर्मी, जिसका नाम लेने से
तेरा सम्मान और तेरी इज्ज़त कम हो जाती है ।
फिर भी छुप छुपाकर, तू हमारे ही दरवाज़े आता है।
रोशनी से दोस्ती हम भी करना चाहते हैं,
आपने अँधेरे को हमारा साथी बना दिया।
उजाले में आपकी इज़्ज़त न अँधेर हो जाए
इसलिए हमें अँधेरों में, अपना उजाला बना लिया ।