बचपन का समय क्या खूब था
मस्ती और खुशियों से भरपूर था
हां, थी एक सीमा, घर के आंगन में ही रहना
बाहर की दुनिया में खो जाने का डर था।
थोड़े बड़े जब हो लिए.. नन्हें कदम स्कूल को चल दिए
समय भी क्या मज़े में कट रहे थे,
नए दोस्त और उनके टिफिन खाने को जो मिल रहे थे।
फिर भी थी एक सीमा, नहीं ज़्यादा किसी से घुलना मिलना
समय ने और भी कई करतब दिखा दिए
कॉलेज में एक नहीं, दो नहीं कइयों के प्रिय बन गए
अब तो और मज़े में समय बिताए
लेकिन वहां भी सीमा में बंधे पाए
दोस्ती यारी बस कॉलेज तक
घर के अंदर बस अनुशासन के साथ रहे।
अगले पायदान पर समय ने पहुंचा दिया
ठीक ठाक नौकरी और जीवन साथी को भेज दिया
अब जीवन की गाड़ी लगी, चलेगी थोड़ी और मज़े में
ये क्या महाराज, यहां भी सीमा ने कस कर पकड़ लिया।
खुद के लिए समय नहीं है, परिवार के लिए जीना सीखो
जाओ काम करो, और घर बार संभालो।
चलो बढ़े एक और कदम, बेटी और पत्नी के बाद
बन गई मां और समय ने फिर से करवट बदला
भाई, औदह तो बढ़ गया, मम्मा कोई बुलाने लग गया
लेकिन यहां भी सीमा ने ज़िम्मेदारियों में जकड़ ही दिया।
पैसे खर्च करने हैं, ज़रूरतें पूरी भी करनी है,
सीमा में रहकर ही आगे का भविष्य बनाना है।
अब तो ज़िंदगी ने आखिरी पड़ाव पर पहुंचा दिया
समय ने क्या खूब साथ दिया, चलने को डंडे का सहारा मिल गया।
यहां भी सीमा ने साथ नहीं छोड़ा, घर के आंगन में ही रहना
अपनों ने ही फ़रमान जारी कर दिया।
आज भी मन दुविधा में है, समय या सीमा : कौन बलवान है?