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आज बड़ी दुविधा में है मन
क्या आप हल करेंगे, मेरी ये उलझन?
मन है मीत हमारा, सब ने सिखलाया है,
धन है जीवन का सहारा, ये भी सबने बतलाया है।
मन की सुनते हैं, दिल की करते हैं,
खुश होकर हंसते हैं, ज़िंदगी से मोहब्बत करते हैं।
धन का होना भी ज़रूरी, करती है ये दुनिया पूरी
लेकिन सत्य तो बस एक ही समझ आता है
रिश्ते जुड़ते हैं, जब धन पास में होता है।
फिर काहे सुने मन की, काहे करें दिल की,
जब धन से बढ़कर कुछ है ही नहीं।
दूसरों की क्या सुने, जब अपनों ने ही खेल खेला है
मन की डोरी, और धन की बोरी के बीच में
रिश्तों को ही तौल डाला है।
समझ से परे है ये जीवन, क्या जाने कौन है पराए
और कौन दिखाते अपनापन?
मन और धन के ताने बाने में, फंसे हैं जैसे सबके संग
जिसे समझा अपना, वो भी बदल रहे अपने रंग।
क्या मन का कोई मोल नहीं, अगर धन है नहीं पास कहीं
या फिर धन का इतना मोल है, चाहे मन हो साफ नहीं।
ऐसे असमंजस में जीवन कैसे जीया जाए,
रिश्तों को जोड़ने में इतनी मेहनत क्यों लगाए?
बदल रहा है समाज, बदल रही है सोच,
पास में है धन, तब काहे का संकोच।
चाहे हो रुतबा, चाहे अहंकार, फिर चाहे हो इंसान
सब पा सकते हो, अगर धन का हो आदान प्रदान.
संस्कार और विद्या कमा कर लाओ,
मन की शांति और सुकून की नींद
है औकात तो खरीद कर दिखाओ।
धन का सहारा लो, कमज़ोरी मत बनाओ
मन को हाथ थामो, इसे ही अपना मीत बनाओ।

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