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माँ के गर्भ में थी, तो लगा यही दुनिया है,जिनमे नहीं कोई कमियां है.
नौ महीने बीत गए उस अँधेरे में, आँखें नहीं खुली जब आये उजाले में.
एक गोद से दूसरे गोद में चलते चले गए,सबके एहसासों को महसूस करते गए.
अनगिनत चेहरों के भाव दिखे, कभी सच्चे तो कभी बनावटी दिखे, लगा जैसे यही
दुनिया थी.
बिस्तर पर पड़े पैर हाथ हिलाते, खिलौनों की आवाज़ से खुश होकर मुस्कुराते, लगा जैसे यही दुनिया थी.
समय बीता, करवटें बदली मैंने, बिस्तर के एक कोने से दूसरे, लगी सैर करने, लगा जैसे यही दुनिया थी.
घुटने के बल चलना शुरू किया, लो आ गयी चुनौती, माँ ने ज़मीन पर उतार दिया, फिर भी लगा जैसे यही दुनिया थी.
दरवाज़े की ओट पकडे, दीवारों के सहारे, नन्हे क़दमों से चल पड़ी मैं, अपनों को निहारे.
सबकी खुशियों का ठिकाना नहीं, मोबाइल कैमरे लिए सबने पुकारा कहीं,लगी देखने सब को हँसते मुस्कुराते, समझ नहीं आया क्यों सब मुझे पुकारते.
बराबर मेरे आने को, सब घुटने पर बैठ गए, इतने फोटो, इतनी सेल्फी, ले लेकर थक गए, फिर भी लगा जैसे यही दुनिया थी.
जन्म से ही चुनौतियों ने घेर रखा है, कहीं ज़्यादा तो कहीं कम, बस डेरा जमाये रखा है.
घर से बाहर निकली तो भीड़ में खो गयी, माँ को छोड़, किसी और की गोद में चली गयी.......
तब पता चला की ये दुनिया है, जिनमे अपने नहीं, अपने बनाने की चनौतियाँ हैं.
होश संभाला तो लगी डरने, भाग दौड़ की इस दुनिया में कही लगी खोने.
माँ के साथ ने हौसला बढ़ाया, फिर भी प्रतियोगिताएं की सीधी चढ़ने में जी बहुत घबराया.
लगा जैसे गिर जाउंगी, संभल नहीं पाऊँगी, ये बाहरी दुनिया शायद जी नहीं पाऊँगी.
माँ ने फिर मुझे सिखलाया, हिम्मत नहीं हारना, ये विश्वास दिलाया.
ज़िन्दगी की जंग को जीतना ही है, कुछ पाकर तो कुछ खोकर, सबक सीखना ही है.
माँ की बातों के असर ऐसा हुआ, तोड़ साड़ी सीमाओं को ज़िंदगी के लोहा लिया.
आसान नहीं कुछ भी इस दुनिया में, पर ग़र हो माँ का साथ और उनका हमारे सिर पर हाथ, तो मुश्किल नहीं, कुछ भी पाना इस दुनिया में.