बहुत कुछ लिखा जा चुका है, हमारे बारे में।
हजारों दफा पढ़ा भी जा चुका है, हमारे बारे में।
लाखों सांत्वना भरे संदेश भी झोली में गिरे, हमारे बारे में।
हिम्मत और हौसले की तो लाइन लगा दी, हमारे बारे में।
निर्भया, अभया, और न जाने कितने खूबसूरत नाम दिए, हमारे बारे में।
फिर भी प्रशासन के कानों में जूं नहीं रेंगी, हमारे बारे में।
अब तक कोई कानून क्यों नहीं बना पाए, हमारे बारे में।
क्यों सरकार कुछ सोच नहीं रही, हमारे बारे में।
क्यों राजनीति जैसे दांव पेंच लड़ नहीं रही, हमारे बारे में।
विधान सभा चुनाव की तयारी जोरों शोरों से हो रही,
नियम या कानून बनाने की बात क्यूं नहीं हो रही,
हमारे बारे में।
इसकी कुर्सी उसके सर, उसकी टोपी इसके सर,
सब तमाशा हो रहा, बराबर हमें दिख रहा,
फिर बात हो क्यों नहीं रही, हमारे बारे में।
संविधान को बनाने में 2 साल, 11 महीने 18दिन लग गए
कानून बने, नियम बने, धाराएं बनी,
अजीब है न, बलात्कार के लिए कुछ नहीं बना,
या कभी तवज्जो ही नहीं दिए गए, हमारे बारे में।
6 माह की नन्ही जान हो, या 6 बरस की वो बच्ची
16 की नौजवान, या 26 की युवा, 36 की महिला हो,
या 46 की अधेड़, 56 की वो मां हो, या 66 की दादी मां
सब के मन में खौफ भर दिया है,
इस संविधान के झूठे कसीदे ने।
सोचा ही नहीं कभी इसने, हमारे बारे में।
सोचा अगर होता, सज़ा अगर मुकर्रर की होती,
थोड़ी सख्ती अगर बरती होती,
तो आज महिला सुरक्षा की कसीदे नहीं पढ़ रहे होते।
बराबरी की बात कर रहे होते, हमारे बारे में।
चलो छोड़ो अब जाने दो,
समझ गए हम, कुछ न होगा इस सिस्टम से,
ना ही ये कुछ कर पाएंगे, हमारे बारे में।
इसलिए अब हमें खुद ही सोचना होगा,
खुद के लिए नियम बनाने होंगे, हमारे बारे में।
डर से नहीं, हिम्मत से सोचेंगे हम, हमारे बारे में।
बेखौफ होकर मंज़िल तय करेंगे,
जीत का जश्न मनाएंगे,
समाज को अस्तित्व का आईना दिखाएंगे
दकियानूसी सोच जो इनकी है, बदल कर रहेंगे, हमारे बारे में।
हमारे बारे में।
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