आज फिर से उसकी याद आई
कसम से लगा जैसे कयामत आ गई
यार ऐसे थोड़ी होता है,
रिश्तों की मर्यादा भी तो रखनी है,
मोहब्बत से बढ़कर ज़िम्मेदारी को तवज्जो जो देनी है।
यही तो होते आया है न समाज में,
प्रेम होते हुए साथ नहीं मिलता,
न होते हुए, रिश्ता निभाना पड़ता।
क्या रीत बनाई है ऊपरवाले ने,
दिल में जो है, ज़ुबान पर नहीं
ज़ुबान पर जो है, ज़िंदगी में कहीं नहीं।
फिर भी चेहरे पर मुस्कान बनाए रखते हैं
सबको खुश करने में जी जान लगाए रहते हैं।
देखते सब हैं, कितनी मशक्कत करते हैं हम,
समझते क्यों नहीं, कि इंसान भी हैं हम।
एक तरफ़ दो दो परिवारों का नाम जुड़ा है साथ में
हिम्मत है, जो जी पाएं अपने सपनों के संग में।
कुंवारी हो, थोड़ी तो सहजता से रहो,
अरे शादी शुदा हो अब, दोस्तों के साथ थोड़ा कम रहो।
लड़केवाले देखने आयेंगे, शरीर पर थोड़ा ध्यान दे दो
यार थोड़ा तो मेंटेन करो, अपना नहीं तो मेरी इज़्ज़त का ही ख्याल कर लो।
सुन सुन कर, हम फिर भी जीती हैं साहब,
दिल होते हुए भी, पत्थर सी बन जाती है साहब।
इन सब के बाद भी, कोई अगर है, जो मोहब्बत करे हमें
कोई है जो सुकूनियत से भर दे हमें
फ़र्क नहीं पड़ता, सात फेरों में बंधे हो उससे
अरे वो मोहब्बत ही क्या, जो कोई छीन ले हमसे
शादी जैसे मनमाने रिश्ते में बांध दे उसे।
यथार्थ में सत्य यही है, प्रेम पूरी ज़िंदगी है,
राधा कृष्ण जैसी पवित्र है।
विवाह का बंधन भी सत्य है,
लेकिन बंधना उसमें, ये ज़िम्मेदारी है।
लो बोल दिया हमने, अब समाज चार बात सुनाएगी
अभी तो कहा न ऊपर साहब हमने
हम ही हैं, जो सब कुछ सहन कर जाएंगी।