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कभी थी चिट्ठियों की सौगात, इंतज़ार में बीती थी रात,
लिखे जो ख़त, वो महकते थे, दिल की बातें कहकहाते थे।
रूबरू मुलाक़ातों का दौर था, हर लफ्ज़ में प्यार का ज़ोर था,
बिना तकनीक के, दिल जुड़ते थे, बस एहसास से रिश्ते बुने थे।
अब हैं चैटिंग, अब हैं कॉल, फिर भी दिल हैं बेहाल,
व्हाट्सएप पे typing... आता है, पर वो जज़्बात कहाँ जाता है?
इमोजी के पीछे जज़्बात छुपे, वीडियो कॉल में एहसास रुके,
ऑनलाइन रहते हैं हर घड़ी, पर मन में खालीपन बढ़ी।
पहले रिश्तों में सब्र था, हर लम्हा एक जश्न था,
अब फ़ास्ट फॉरवर्ड में जी रहे हैं, पर दिलों में दूरी सी लिए हैं।
90s का प्यार था बेसब्र इंतज़ार, आज का प्यार बस एक उपहार,
तब दिल बातें करते थे, अब सिर्फ़ उंगलियाँ टाइप करती हैं।
क्या फिर लौटेंगे वो पुराने दिन? जब आँखों में सच्चाई दिखेगी,
जब लाइक और कमेंट नहीं, सिर्फ़ मैं और तुम की बात होगी?
शायद वक्त के साथ बहुत बदला है, पर सच्चे रिश्तों का रंग न बदलेगा,
क्योंकि प्यार का मतलब सिर्फ़ साथ होना नहीं,
बल्कि दिलों का जुड़ना ही असली रिश्ता है।

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