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बदले की हवा में काँपती है रूह,
स्त्री की पुकार, दर्द में लिपटी हुई।
बेबस आँखों में छिपे हैं आँसू,
खामोश चीखें, न जाने कितनी बार टूटी हुई।
अँधेरों की रात में झुलसी है आत्मा,
हर स्पर्श से डरती, हर परछाई से भागती।
उसने खोया विश्वास, खोया अपना अस्तित्व,
सपनों के किले में जंजीरों की खटखटाहट है गूंजती।
गली-गली में इंसाफ की तलाश,
न्याय की उम्मीद, धुंधली आँखों से देखती।
हर दर पर ठोकर, हर दरवाजे पर ताले,
अपने ही देश में बेगानी सी लगती।
संघर्षों का सागर, अनगिनत लड़ाइयों का सफर,
अपने हक के लिए, अपनी पहचान के लिए।
चुप्पी तोड़कर, उठाई है आवाज,
उसने सीखी है लड़ाई, अपने आत्मसम्मान के लिए।
जीवन के हर मोड़ पर है मुश्किलों का पहाड़,
पर उसकी हिम्मत नहीं हारती।
हर आँधी के बाद आता है सवेरा,
और वह जानती है, उसे नहीं रुकना है, चलते रहना है।
आओ मिलकर उसका साथ दें,
हर हाथ बने उसका सहारा।
भरोसा दें, उसका मान बढ़ाएँ,
स्त्री की महिमा को फिर से जगमगाएँ।