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वह सुहानी शाम सी में शीतल की रात सा
वो वसंत की धूप सी में सर्द की ओस सा
वो एक कविता सी में कविता का अंत सा
वो नदिया का एक किनारा तो में नदिया का दूसरा किनारा सा
हमारा मिलन भी असंभव सा पर हमारे मिलन की आस संभव सी
एक ही कश्ती हे एक ही नदियां है
एक ही सहारा है एक हु किनारा है 

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