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स्त्री काम खत्म करके भी काम पर जाती है
फिर स्त्री उस काम को खत्म करके
घर की ओर कदम बढ़ाती है
सोमवार हो या शनिवार
हर दिन अपनी जिम्मेदारी निभाती है
हर हाल में हमे जीना सिखाती है
टूटे हुए बटन से लेकर टूटे हुए
आत्मविश्वास तक को जोड़ने का हुनर बतलाती है
स्त्री हमे हमेशा काम में ही नजर आती हे
स्त्री काम खत्म करके भी काम पर जाती है
न जाने क्यों स्त्री हमेशा बंधनों में बंधी नजर आती हे
पायल के साथ श्रृंगार तो करती है पर कभी
उस श्रृंगार को निहारती नजर नहीं आती
हमेशा उसकी नजरे घड़ी की सुई पर ही टिकी होती है
की में लेट हो गई या मेरा काम अधूरा रह गया
इन सब के बाद भी स्त्री हमेशा खुश नजर आती हे