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हुई भोर, सूरज मुसकाया,
भागा तम ले अपना साया,
सिमट गई तारों की माया,
धुंधली हुई चांद की छाया ।

हिम गिर दिखें श्वेत चमकीले,
क्षितिज हुए नारंगी पीले,
वादी के रंग प्यारे प्यारे,
लगते अनुपम न्यारे न्यारे l

कंठ कोकिला कोयल गाई,
अपने गीत कहीं उपवन में,
चिड़ियों ने कलरब कर बांधा,
उसे मधुर संगीत धुनों में ।

शीतल निर्मल पवन बह रही,
घर, आंगन, जंगल, उपवन में,
लगता जैसे अमृत भरती,
अंदर तक सबके तन मन में। ।

इतना सुंदर भोर का मेला,
सच मानो एक अमृत बेला,
साथ रहे यदि इसका साया,
बने निरोगी, सुंदर काया ।

आलस छोड़ो, निद्रा तोड़ो,
योग करो या खेलो खेला,
चाहे कुछ भी याद रहे ना,
याद रहे यह अमृत बेला ।

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