तनिक से मच्छर ने आकर
कान में कू कर दिया,
चुपचाप बैठा बदन पर
थोड़ा खून मेरा पी गया,
मेरा हाथ देता दंड उसको,
मगर वह कहीं उड़ गया,
और मेरे बदन में कुछ
जहर अपना भर गया,
मैने पूछा, मेरे दुश्मन,
क्यूं किया इतना कहर,
खून के बदले मेरे तन,
तुमने भरा अपना जहर,
पाठशाला कोई ऐसी ,
नहीं देखी ना सुनी,
ये गजब का हुनर तूने,
कहां सीखा किस शहर।
मच्छर बोला अरे भाई,
मत बनो अनजान इतने,
ये हुनर मानव से सीखा,
हर एक घर, गांव, शहर,
देखो ज़रा इतहास में,
और ग्रंथ बेद पुराण में,
इंसां से ज्यादा मुझे बुरा,
ना पाओगे व्यवहार में l
वो करे चुपचाप धोखा,
रचे कटु षडयंत्र भी,
देता रहे बार बार दुख,
देखे न दिन क्या रात भी,
अपने इस व्यवहार में,
बेफिक्र है रिश्तों से भी,
धोखा नहीं, मैं तो करूं,
कूं कान पर कई बार भी ।