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जब भी जीवन के कठिन मोड़ों पर थकान होती है, तो एक छाया हमेशा याद आती है — माँ का आँचल। वह आँचल जो कभी छांव बनकर धूप से बचाता है, कभी आंसुओं को पोंछता है, और कभी चुपचाप सब कुछ समेट लेता है। माँ का आँचल केवल कपड़े का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि उसके पूरे जीवन की कहानी है — एक ऐसी कहानी जिसमें आँसू भी हैं और मुस्कानें भी, बलिदान भी है और ममता भी।

आँचल: ममता की परिभाषा

एक बच्चा जब इस दुनिया में आता है, तो सबसे पहले जो उसे छूता है, वह है माँ का आँचल। वही आँचल जो उसकी पहली रजाई बनता है, उसका पहला खिलौना, और पहला स्कूल। माँ के आँचल की सिलवटों में वह सारा संसार छुपा होता है जिसमें बच्चा खुद को सुरक्षित महसूस करता है। आँचल माँ की बाहों का विस्तार है — वह सुरक्षा कवच जिसमें दुनिया के सारे डर बेमानी हो जाते हैं।

लेकिन उस आँचल की तह में एक और कहानी भी है — आँसुओं की कहानी। वो आँसू जो माँ चुपचाप बहा देती है, ताकि बच्चे को कभी दुख न पहुंचे। वो आँसू जो कोई नहीं देखता, क्योंकि माँ हमेशा मुस्कुराती रहती है। पर उस मुस्कान के पीछे छुपे होते हैं हज़ारों अधूरे ख्वाब, अनकहे दर्द, और एक स्त्री के त्याग की निशानियाँ।

माँ के आँसू: बेआवाज़ बलिदान

माँ के आँसू अक्सर किसी को दिखाई नहीं देते, क्योंकि वो उन्हें दुनिया से छिपा लेती है। उसका दुख कभी उसके चेहरे पर नहीं आता। जब बच्चा बीमार होता है, तो माँ सारी रात जागती है, पर सुबह मुस्कुराकर कहती है – "मैं तो ठीक हूँ बेटा, तू बता कैसे है?"

उसके आँसू कभी थकावट की वजह से नहीं बहते, वो तो तब बहते हैं जब कोई उसकी ममता को न समझे, जब उसका त्याग पहचाना न जाए। फिर भी वो चुप रहती है, क्योंकि उसकी ताकत उसकी सहनशीलता में है। वह जानती है कि आँसू बहाने से नहीं, उन्हें पी जाने से परिवार मजबूत होता है।

आँचल और आँसू: दो सिरों की एक ही कहानी

माँ का आँचल और उसके आँसू — दोनों एक ही धागे से जुड़े हैं। आँचल बाहर की दुनिया को दिखता है, लेकिन आँसू अंदर के संघर्ष को बयान करते हैं। उस आँचल को देखकर हम बड़े हुए, खेलते रहे, रोते रहे, सोते रहे। वहीं आँचल हमारी ढाल बना, हमारी छांव बना।

पर क्या कभी किसी ने सोचा कि उस आँचल को फैलाकर रखने के लिए माँ को कितने आँसू बहाने पड़े होंगे?

कभी ससुराल में अपमान सहा, कभी पति के क्रोध को चुपचाप सह लिया, कभी बच्चों की जिदों के आगे खुद की इच्छाएं दबा दीं। वह खुद को धीरे-धीरे मिटाती गई, पर परिवार को पूरा करती गई। उसका आँचल बड़ा होता गया, लेकिन उसके आँसू भी गहरे होते गए।

बचपन की यादें और माँ का आँचल

बचपन की कुछ सबसे प्यारी यादें माँ के आँचल से जुड़ी होती हैं। दोपहर की गर्मी में उस आँचल के नीचे सो जाना, बारिश में भीगकर माँ के आँचल में छुप जाना, और डर लगने पर उसी आँचल को पकड़ लेना — ये सब भावनाएं उम्र भर हमारे साथ रहती हैं।

वो आँचल जिसने हमें छुपाया, वहीं आँचल रात को हमारे बिस्तर को ढकता था। जब बुखार में तपते थे, माँ का आँचल ठंडी पट्टी बन जाता था। जब मन उदास होता था, माँ उसी आँचल से हमारा चेहरा पोंछ देती थी और कहती – "सब ठीक हो जाएगा।"

समय का चक्र: जब माँ बूढ़ी हो जाती है

समय किसी के लिए नहीं रुकता। वही माँ जिसका आँचल कभी हमारी पूरी दुनिया था, आज उम्र के आखिरी पड़ाव पर अकेली खड़ी होती है। आँखें अब भी नम होती हैं, पर शायद अब कोई पोंछने वाला नहीं। आँचल अब भी वहीं है, पर उसे थामने वाले हाथ कम हो गए हैं।

आज जब माँ बूढ़ी हो जाती है, तो क्या हम उसका आँचल पकड़ते हैं जैसे उसने बचपन में हमारा थामा था?

वह अब भी मुस्कुराती है, अब भी कहती है – "मैं ठीक हूँ", पर उसकी आँखों में आँसू अब भी वैसा ही दर्द लिए होते हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अब हम बड़े हो गए हैं, और शायद उन आँसुओं को देखना भूल गए हैं।

माँ की चिट्ठियाँ और अधूरे सपने

कई बार माँ ने अपने आँचल में कुछ चिट्ठियाँ छिपाई होती हैं — अधूरे सपनों की, अधूरी इच्छाओं की। वह बनना चाहती थी कुछ और, करना चाहती थी कुछ और, लेकिन परिवार की जरूरतों ने उसे बदल दिया। उसका सपना था पढ़ाई पूरी करना, नौकरी करना, पर उसने बच्चों की कॉपी-किताबें खरीदने के लिए अपने ख्वाबों की किताबें बंद कर दीं।

उसकी मुस्कान में एक कसक होती है — "काश, कभी खुद के लिए भी कुछ किया होता।"

आधुनिक दौर में माँ की भूमिका

आज की दुनिया तेज़ हो गई है, बच्चे विदेशों में हैं, करियर की दौड़ में व्यस्त हैं। माँ अब व्हाट्सएप की डीपी पर है, लेकिन उसके आँचल की महक अब स्क्रीन से नहीं आती। उसका इंतज़ार अब वर्चुअल कॉल्स पर सिमट गया है।

पर माँ अब भी वही है। वह अब भी वही आँचल ओढ़े खड़ी है, जिसमें कभी हमने अपना बचपन बिताया था। अब समय है कि हम उसके आँचल को फिर से थामें, उसके आँसुओं को समझें, और उसका हाथ पकड़ें — जैसे उसने उम्र भर हमारा साथ निभाया।

क्या हम माँ के आँचल के कर्जदार नहीं हैं?

क्या हम माँ के आँचल और आँसुओं के कर्जदार नहीं हैं? क्या हमारा फर्ज़ नहीं बनता कि अब जब वह थक गई है, तो हम उसका सहारा बनें? उसके अधूरे सपनों को सुनें, उसकी चुप्पी को समझें?

माँ को कभी हमसे बहुत कुछ नहीं चाहिए होता। बस थोड़ा समय, थोड़ी बातचीत, और थोड़ी सी कदर। उसकी दुनिया बहुत छोटी है — जिसमें उसके बच्चे बसते हैं। अगर हम उसकी आँखों में झांकें, तो वहां सिर्फ प्यार मिलेगा — वो भी बिना शर्त के।

निष्कर्ष: आँसू और आँचल – माँ की अमर कहानी

"आँसू और आँचल" केवल एक कविता या कहानी नहीं, बल्कि हर माँ की ज़िंदगी का सार है। उसकी हर सांस में परिवार की चिंता है, हर पल में बच्चों का भविष्य। उसके आँसू चुपचाप बहते हैं, लेकिन वो कभी शिकायत नहीं करती। उसका आँचल दुनिया की सबसे मजबूत ढाल है, जिसमें केवल ममता ही ममता है।

आज जब आप ये लेख पढ़ रहे हैं, एक बार आँखें बंद करें और उस माँ को याद करें जिसने अपना सब कुछ आपके लिए छोड़ दिया। क्या आपने उसे आज फोन किया? क्या उसकी आँखों के आँसू देखे? क्या उसका आँचल पकड़कर कहा – "माँ, तूने जो किया, उसका कोई मोल नहीं।"

अगर नहीं, तो अभी कर लीजिए। क्योंकि माँ का आँचल जितना विशाल है, उसका दिल उससे भी बड़ा है। और उस दिल की कहानी है — "आँसू और आँचल।"

लेखक का संदेश:

अगर यह लेख आपकी माँ की याद दिला गया हो, तो आज ही उनसे बात करें। उनका हाथ पकड़ें। उनका आँचल फिर से थामें। क्योंकि माँ सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक अहसास है — जो हर दिन महसूस किया जाना चाहिए।

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