मेहरबां लिखूँ?
या दिलरुबा लिखूँ?
हैरान हूँ के आपको
इस खत में क्या लिखूँ?
यादों के झरोखों में जब झांँका तबस्सुम ने,
तब जिंदगी की ढलती हुई शाम की लौ थरथरा रही थी।
तब उस शाम की यादों का उड़न खटोला,
मेरे जहन में आकर टकराया,
और ना जाने कितने अनगिनत राग को छेड़ गया।
जैसे ही पास पड़ी डायरी पर लिखने के लिए मैंने जब कलम उठाई,
पर कलम का ढक्कन ही खोल पाई कि मेरे हाथ तो काँपने लगे।
फिर न जाने कब खोए हुए वह एहसास आज फिर जागृत हो गए….
जैसे कि कभी उनकी बृज जैसी विशाल उठान पर,
मै एक निश्चल नदी की तरह बह रही थी।
वह दिन तो बिल्कुल पखेरू की तरह उड़ गए...
पर उन ख्यालो की सरसराहट,
आज भी रोमांचित कर गई।
सोचती हूंँ कि मैं इस खत पर क्या लिखूंँ,
बीता हुआ कल लिखूंँ या आने वाले सपनों को संजोऊँ।
अपनी भावनाओं को संभाल कर रखू,
या सब के लिए एक खुली किताब बन जाऊँ।
जिंदगी का कारवांँ तो गुजरता ही चला जा रहा है,
क्या छोड़ू या क्या समेटूँ।
अश्कों से यदि लिखती हूंँ,
तो सब धुंधला और अजीब सा दिखाई देगा।
फूलों से अल्फ़ाज़ लिखूंँ
तो खुशबू सी महकने लगेगी।
या फिर उस स्याही से लिखूँ जो लिखते लिखते ही,
अल्फाज को अपने में समेट कर रख गुम हो जाती है।
इसी उधेड़बुन में कब से,
मैं अपने जज्बातों को समेट कर बैठी हूंँ।
डर है यदि मैं लिखना शुरू करूंँ,
तो कहीं हवा के झोंके से वह पन्ना न पलट जाए।
बड़ी असमन्जस में हूँ,
कहीं अफसाना ना बन जाएं।
मैंने सितारों पर एक चिरस्थायी कहानी की कामना नहीं की,
लेकिन प्रिय तुम्हारी मुस्कान शुद्ध जादू थी।
यह संबंध इतना मजबूत है,
कि मैं अपनी रीढ़ की हड्डी में कंपन सा महसूस करती हूँ।
तुमने मुझे हँसी में उड़ा दिया,
मेरी भावनाओं को भड़का दिया।
एक स्वर की तरह,
आपकी आवाज मेरे सिर में गूंजती है।
और हमारे शरीर का आलिंगन,
सबसे मधुर राग फिर कभी नहीं सुना।
आप कितने आनंदमय संस्मरण बन गए हैं,
आपकी यादों के सपने संजोए हुए…….