Image by Pexels from Pixabay

कैसे भटक गया तू अपनी राहों से,
मुकम्मल जुनूं तेरा खुदा की पनाहों से ।

कौन सी बीमारी है तेरे जहन में,
कराता रहा इलाज चारागारों से ।

जिंदगी को खेल समझकर तबाह ना कर
नही यकीन तो पूछ ले इसके दावेदारो से ।

किताबों मे जो कभी मिला ही नही,
सिखा दिया वो किस्मत के मारों से।

भरोसा खुद पर किए बिना क्या जी पाएगा,
हौसला बिक जाएगा तेरा नफरत के बाजारों से ।

शहर में भीड़ है फिर भी तनहा है दिल,
किसको अपनी सुनाएगा क्या सुनेगा इन लाचारों से ।

दुशमनी का डर नही तुझको ए ‘वजह’
डर है तो बस दोस्ती के हथयारों से ।

कैसे भटक गया...!
मुकम्मल..!

.    .    .

Discus