मुझे लिखना था तो कैसे खुद को रोक सकता था
मुझे लिखना था तो कैसे खुद को रोक सकता था
पर तुझे खुद के लिए मैं कैसे सोच सकता था ।
मेरे गम पर करते रहे चर्चा मुझे जानने वाले लोग,
कोई नजर एक न आया जो आंसू पोंछ सकता था ।
जला दिया जिंदगी की डायरी के उस पन्ने को,
जो दिल के जख्मों हर बार को खरोंच सकता था ।
दिल के अरमान पन्नो पे लिखे उनमें एक था तेरा भी
मिटा दिया उन लफ्जों को फिर सोचा कई दफा भी
कोई रास्ता न अब मोहब्बत तक पोहोच सकता था ।
मुझे लिखना था तो कैसे खुद को रोक सकता था
पर तुझे खुद के लिए मैं कैसे सोच सकता था ।