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तुझसे दिल लगा है उसे मोहब्बत कैसे कहूं,
तूने सिर्फ सर हिलाया है उसे इजाजत कैसे कहूं ।

तेरे सजदे में सर झुका है पर मन में डर सा है,
इस असमंजस के साथ सजदे को इबादत कैसे कहूं।

कुछ ही वक्त तो बीता है तुझसे मिले पर समझ नहीं आता
मैं इसे शौक तो नहीं कह सकता पर आदत भी कैसे कहूं ।

ये एक तरफ़ा चाहत है या कोई और बात,
तेरी ख़ामोशी को अब मैं इनायत कैसे कहूं ।

हर पल इंतज़ार में तेरे गुज़र रही है ये शाम,
बेचैनियों भरी इस रात को राहत कैसे कहूं ।

लबों पे हंसी है मेरे, पर आंखें हैं नम,
अधूरे ख़्वाबों को मैं हकीकत कैसे कहूं ।

तेरी बेरुखी मुझे खामोश कर देती है,
इस दर्द-ए-दिल को अब मैं शिकायत कैसे कहूं ।

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