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"दादाजी, आप और दादी फिर शिमला जा रहे हैं?‌ हमारे साथ कर्नाटका क्यों नहीं चल रहे? हर बार शिमला जाकर आप बोर नहीं हो जाते?" सचिन अपने दादाजी से सवाल पे सवाल पूछता जा रहा था। 

उसके दादाजी संजय अरोड़ा ने हंसते हुए उसे अपने पास बैठाया और बोले,"शिमला से तेरी दादी और मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हैं। इसलिए हम हर साल शिमला जाकर उन यादों को ताज़ा करते हैं।" 

"कैसी यादें दादाजी! हमें भी बताइए ना।" अनविता भी उनके पास आकर बैठते हुए बोली।

"शिमला में ही तुम्हारी दादी और मैं पहली बार मिले थे। इसलिए वो जगह हमारे दिल के बहुत करीब है।" संजय जी ने कहा। 

"ये तो लव स्टोरी है दादाजी। हमें भी सुनाई ना। आपकी और दादी की पहली मुलाकात।" अनविता उछलते हुए बोली।

संजय जी थोड़ा हिचकिचाए पर बच्चों के ज़ोर देने पर उन्होंने अपनी पत्नी सविता के साथ हुई पहली मुलाकात का वर्णन सुनाना शुरू किया।

"मुझे घूमने का बहुत शौक था। जब भी कॉलेज में 

एक - दो दिन की छुट्टियां आती मैं अपनी मित्र मंडली के साथ निकल पड़ता था। उस समय मेरे दोनों मित्र किसी ज़रूरी काम में फंस गये इसलिए मैंने सोचा कि मैं अकेले ही घूम आता हूं। वैसे भी अकेले घूमने का आनंद ही कुछ और होता है। तो मैंने तय किया कि पांच दिन शिमला में बिताए जाएं। तो मैं निकल पड़ा अपनी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत और यादगार यात्रा पर।" संजय जी यह कह अतीत के सफर पर चल पड़े।

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शिमला सन् 1978

शिमला किसी परिचय का मोहताज नहीं है क्योंकि यह भारत का सबसे लोकप्रिय पर्यटक स्थल है। हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला को "पहाड़ों की रानी " कहकर भी बुलाया जाता है। ब्रिटिश काल में शिमला को ग्रीष्म कालीन राजधानी घोषित किया गया था। आज़ादी के बाद यह पहले पंजाब की राजधानी थी लेकिन बाद में हिमाचल प्रदेश का हिस्सा बन गई। 

उस समय में हमारे पास तुम्हारी तरह स्मार्टफोन नहीं थे। बहुत ही शांत और सुकून भरी ज़िन्दगी थी। वैसे तो मैं हमेशा अपने दोस्त प्रताप के साथ घूमने जाता था। पर उस समय प्रताप को किसी शादी के उत्सव में जाना पड़ गया। तो मैं अकेले ही चल पड़ा शिमला की वादियों में खुली सांस लेने। 

उन दिनों शिमला बस द्वारा ही पहुंचा जा सकता था। तो मैं बैठ गया बस में। काफी लम्बा सफर तय कर बस कालका तक पहुंची। मैंने तय किया था कि शिमला की वादियों को और नज़दीक से देखने के लिए मैं कालका से शिमला तक का सफर टॉय ट्रेन में तय करूंगा। 

टॉय ट्रेन धीरे-धीरे शिमला की वादियों में बढ़ने लगी। तभी एक खूबसूरत सी लड़की मेरे सामने वाली सीट पर अपनी सहेलियों के साथ आ बैठी। कजरारी आंखें, गुलाबी होंठ, सुराही दार गर्दन, और चूड़ीदार सलवार कमीज़ में वो बहुत सुन्दर लग रही थी। मुझे अपनी तरफ यूं घूरते देख वो मन ही मन बड़बड़ाने लगी। उसे असहज होता देख मैंने उसकी तरफ से नज़रें घुमा लीं। मेरे वहां बैठने की वजह से उसकी सहेलियां भी खुल कर वादियों के मज़े नहीं ले पा रहीं थीं। तो मैं वहां से उठ दरवाज़े पर आ खड़ा हुआ। 

धीरे-धीरे टकसाल, घुम्मन, कोटी, सोलन, शोगी, तारा देवी, जुतोह होते हुए टॉय ट्रेन शिमला की वादियों में पहुंच गई। टकसाल से शिमला तक का वो सफ़र बहुत ही खूबसूरत था। ठंडी हवाओं और बर्फीली सफेद बर्फ से ढकी पहाड़ियां एक अलग ही नज़ारा दिखाती हैं।‌

शिमला पहुंच मैंने एक होटल में रूम लिया और कुछ देर आराम करने के बाद निकल पड़ा शिमला घूमने। 

मेरे होटल से रिज बहुत करीब था। रिज शिमला के पर्यटकों का प्रमुख स्थान है। यहां पर खुला हुआ स्थान है जहां से पर्वत श्रंखलाओं का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है। मैं भी वहां की खूबसूरती तो अपने कैमरे में कैद कर रहा था। तभी मेरे कैमरे के फोकस में टॉय ट्रेन वाली लड़की कैद हो गई। मैंने भी झट कैमरे का बटन दबा दिया। मैं उससे बात करने के लिए आगे बढ़ा ही था कि वो अपनी सहेलियों के साथ वहां से चली गई। उससे दोबारा मिल पाऊंगा कि नहीं ये तो नहीं पता था पर खुश था कि उसकी तस्वीर मेरे पास हमेशा रहेगी। 

रिज के खूबसूरत नज़ारे अपने कैमरे में कैद कर मैं मॉल रोड चल पड़ा। मॉल रोड खरीदारी के शौकीन लोगों के लिए सबसे बेहतरीन जगह है। वैसे मुझे खरीदारी का शौक नहीं है पर मां और बहन ने जाने से पहले लम्बी लिस्ट थमा दी थी। तो मजबूरी में मुझे भी शॉपिंग करनी पड़ी।

मॉल रोड शॉल, लकड़ी से बनी वस्तुओं, स्मृति चिन्हों और ऊनी कपड़ों के लिए बहुत प्रसिद्ध है। आज तो वहां बड़े-बड़े रेस्टोरेंट और ऊंची दुकानें बन गई हैं, पर उस ज़माने में वहां छोटी-छोटी दुकानें हुआ करती थीं। 

मैं एक शॉल की दुकान के पास खड़ा हो मां के लिए शॉल पसंद कर रहा था। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि तभी अचानक वो लड़की भी उस दुकान पर आ गई। मैं उसे देख हल्के से मुस्कुरा दिया। उसने भी हल्की मुस्कुराहट बिखेरते हुए शॉल देखना शुरू कर दिया।

"आप मेरी मदद कर सकती हैं?" मैंने हिम्मत जुटाते हुए पूछा। 

"कहिए, हम क्या मदद करें।" उसने अपनी प्यारी आवाज़ में कहा।

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं मां के लिए कौन सी शॉल लूं। क्या आप गाइड कर देंगी?" मैंने कहा।

उसने दुकानदार से कुछ पश्मीना शॉलें निकालने को कहा। उसमें से एक हल्की पीली रंग की सुन्दर कढ़ाई वाली शॉल मुझे दिखाते हुए बोली,"ये सबसे अच्छी रहेगी।" 

मैं उसका शुक्रिया अदा करता इससे पहले उसकी सहेलियों ने आवाज़ दे उसे बुला लिया। मैंने वही शॉल खरीदी और कुछ और शॉपिंग कर वहां से होटल चल पड़ा। रात का खाना खा सो गया। सुबह जाखू मंदिर जाना था। 

जाखू मंदिर शिमला की सबसे ऊंची चोटी पर स्थित है। यह हनूमान जी का काफी प्राचीन मंदिर है जिसका उल्लेख कई पौराणिक कथाओं में किया गया है। इसकी प्रसिद्धि इस बात से भी है कि यहां बनी हनुमान जी की मूर्ति बहुत ही विशाल और ऊंची है। 

मंदिर के बाहर लिखा था "बंदरों से सावधान। कोई भी कीमती वस्तु हाथ में ना रखें।" मंदिर के गेट से परिसर तक पहुंचने के लिए काफी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं। मैं भी मन मैं भक्ति भाव लिए चढ़ता जा रहा था। अचानक कुछ लड़कियों के चिल्लाने की आवाज़ आई। मैंने पलट कर देखा तो वहीं लड़की और उसकी सहेलियां खड़ी चिल्ला रहीं थीं। 

उस लड़की का पर्स बंदर ने छीन लिया था। और वो सब बंदर से पर्स वापस मांग रहीं थीं। मैं वहां पहुंचा और उस लड़की की सहेली के कानों में कुछ कहा। उसने तुरंत अपना पर्स निकाल मुझे दिया। मैंने उसका पर्स बंदर को दिखाते हुए उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। फिर उस पर्स को सीढ़ी पर फैंक दिया। मेरे ऐसा करने पर बंदर ने भी देखा-देखी छीना हुआ पर्स सीढ़ी पर फैंक दिया। जैसे ही उसने ऐसा किया मैंने फुर्ती से दोनों पर्स उठाए और सबको सीढ़ियों पर भागते हुए चढ़ने को कहा। 

हम भागते-भागते परिसर के अंदर आ गये। मैंने दोनों पर्स उन्हें दिए और उस लड़की को कहा,"बाहर साफ लिखा है हाथ में कुछ मत रखिए।" 

उसने माफी मांगी और सबने मुझे धन्यवाद किया और‌ दर्शन के लिए चल पड़े। दर्शन कर मैंने वहीं लंगर करने का फैसला किया। भगवान का प्रसाद फिर कब चखने को मिलता। बहुत ही स्वादिष्ट लंगर बनता है वहां। लंगर कर मैं अपने होटल के लिए रवाना हो गया। थोड़ी देर में मुझे कुफरी के लिए निकलना था। 

कुफरी शिमला से मात्र 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा किन्तु प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने की बहुत अच्छी जगह। क्योंकि उस समय ठंड का मौसम था तो लोग स्कीइंग का भी आनंद लेने वहां जाते हैं। 

हमारे ज़माने में क्योंकि जनता कम थी इसलिए वहां की सफेद बर्फ पर स्कीइंग का आनंद ही कुछ और होता था। आजकल जनता इतनी बढ़ गई है कि बर्फ़ भी काली पड़ जाती है। 

कुफरी का दृश्य मन को प्रसन्न करने वाला था। चारों तरफ बर्फ ही बर्फ। सफेद, स्वच्छ निर्मल बर्फ। मैं वहां बस से पहुंचा। बस वाले ने सभी यात्रियों को तीन घंटे में वापस आने के लिए कहा। 

वहां पहुंच हमें अलग से मोटे सूट और जूते प्रदान किए जाते हैं। जिससे हमें बर्फ़ में चलने में आसानी रहे। वो कपड़े पहन मैं बर्फ़ का आनंद लेने लगा। वहां से चारों तरफ बर्फ से ढके पहाड़ों को अपने कैमरे में कैद कर रहा था। लगभग एक घंटे बाद वहां बहुत तेज़ भोंपू बजा और लाउडस्पीकर पर आदेश जारी होने लगे कि मौसम खराब होने का अंदेशा है इसलिए सब लोग अभी की अभी अपने-अपने वाहन की तरफ चले जाएं। देखते ही देखते अफ़रा-तफ़री मच गई। मैं भी अपनी बस की तरफ भाग रहा था कि अचानक किसी चिरपरिचित आवाज़ के चिल्लाने से रुक गया। पलट कर देखा तो वही लड़की पहाड़ के काफी ऊपर खड़ी चिल्ला रही थी। 

उसका पैर बर्फ़ में फस गया था। बहुत कोशिश करने पर भी वो उसे निकाल नहीं पा रही थी। मैं बिना कुछ सोचे उसकी ओर भागा। बहुत मुश्किल से मैं पहाड़ चढ़ा। जब उस तक पहुंचा तो वो हताश हो रो रही थी।

मैंने बहुत मेहनत की उसका पैर बाहर निकालने की। जब नहीं निकला तो मैंने उसके पैर की आस-पास की बर्फ को हाथों से हटाना शुरू किया। हाथ सुन्न हो चुके थे। पर मैं अपना काम करता रहा। धीरे-धीरे उसकी पैरों की पकड़ ढीली पड़ी और उसका पैर बाहर निकल गया। 

तभी हल्की-हल्की बर्फ गिरने लगी। मैंने झट उसका हाथ पकड़ा और नीचे की ओर भागा। पर जब तक हम नीचे आए तब तक सब बसें जा चुकी थीं। बर्फ बारी और तेज़ हो गई थी।

हम हिम्मत कर जैसे तैसे वहां बनी दुकानों तक पहुंचे। लगभग सब दुकानों पर ताला था सिवाय एक दुकान के। मैंने उसका शटर उठाया और उसे अंदर आने का इशारा किया।

"ऐसे कैसे हम आपके साथ अंदर आ जाएं?" उसने कहा।

"जी, मरने से बेहतर है आप मुझ पर यकीन कर अंदर आ जाएं। वरना आप यहीं बर्फ़ में दफन हो जाएंगी।" मैंने गुस्से में कहा।

उसने मेरी बात मान ली और अंदर आ गई। मैंने शटर डाउन किया और किसी तरह वहां माचिस और मोमबत्ती ढूंढ़ी। 

ठंड से कुफरी की उन वादियों में हमारी कुल्फी जम चुकी थी। वो एक चाय वाले की दुकान थी। फ्रिज में थोड़ा बहुत दूध रखा था जो हमारी तीन-चार बार की चाय के लिए काफी था। मैं चाय बना ठंड और डर से कांपती उस लड़की के पास गया और उसे चाय पकड़ाते हुए बोला ,"मेरा नाम संजय है। आप बिल्कुल मत घबराएं अब हम सुरक्षित हैं।" 

उसने कांपते हाथों से चाय का कप पकड़ा और मुझे धन्यवाद करते हुए कहा, "मेरा नाम सविता है। आपका बहुत-बहुत आभार। वरना आज मैं मर ही जाती।" 

उस रात हमने बहुत बातें कहीं। एक-दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका भी मिला। अगले दिन वहां से चलते हुए हमने उस चाय वाले के नाम एक पांच सौ रूपए का नोट और एक धन्यवाद का ख़त छोड़ दिया। 

बाहर निकले तो नज़ारा ही कुछ और था। बर्फ के अलावा कुछ और नज़र नहीं आ रहा था। हम बहुत मुश्किल से सड़क मार्ग तक पहुंचे। वहां सविता की सहेलियां आर्मी के जवानों के साथ पहले ही मौजूद थीं।

सविता को देख भाग कर वो उसके गले लग गई। सविता ने उन्हें सब बताया। सबने आकर मेरा धन्यवाद किया। उसके बाद हम वापस शिमला आ गए।

अब शिमला में हमारा एक दिन और बचा था। सविता के आग्रह पर मैंने उनका ग्रुप ज्वाइन कर लिया। उस दिन हम सब एक साथ घूमे।

सबसे पहले हम शिमला के क्राइस्ट चर्च गये। वहां का क्राइस्ट चर्च वास्तुकला की नव-गॉथिक शैली का उल्लेखनीय उदहारण है। ग्लास की खिड़कियां, पीतल की घंटी और ऊंचे टॉवर के साथ, यह चर्च शिमला की खूबसूरती को चार चांद लगा देता है। वहां मैंने क्राइस्ट से प्रार्थना की, कि सविता के साथ मिला ये साथ हमेशा बना रहे। शायद... सविता ने भी यही प्रार्थना की होगी।

उसके बाद हम मॉल रोड पर स्थित शिमला संग्रहालय घूमने गए। एक गणित का विद्यार्थी होने के कारण मुझे पुरातत्व विभाग में कोई दिलचस्पी नहीं है। पर चूंकि सविता इतिहास की अध्यापिका थी तो वो संग्रहालय देखने को बहुत उत्सुक थी। 

इस संग्रहालय में प्राचीन मूर्तियां, सिक्के, मुगल और राजस्थानी पेंटिंग का संग्रह देखने को मिला। 

इसके बाद हम रिज से 3 किलोमीटर दूर राष्ट्रपति निवास देखने गये। इसका निर्माण 1888 में हुआ था। यह वॉइस रॉय लार्ड डर्फिंग का निवास स्थान है। यहां ब्रिटिश काल की बहुत सी दिलचस्प चीज़ें प्रदर्शित करके रखीं गईं हैं। बेहद दिलचस्प चीज़ें हैं। सविता को यह सब बहुत पसंद आया। 

उसके बाद हम काली बाड़ी मंदिर गये। ये मंदिर देवी काली को समर्पित है, जिसमें देवी की एक मनोरम मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर को श्यामला के नाम से भी जाना जाता है। शिमला को अपना नाम देवी श्यामला से ही मिला है। मंदिर की ऊर्जा बहुत ही साकारात्मक थी। आरती में मैंने और सविता ने इकट्ठे पूजा की। माता से भी यही प्रार्थना की जीवन भर ऐसे ही हम उनकी आरती करते रहें। 

अगले दिन वापस जाने का समय आ गया। हमने टॉय ट्रेन से कालका तक वापस जाने का तय किया। टॉय ट्रेन का वापसी का वो सफ़र सबसे खूबसूरत और यादगार सफ़र था। 

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वर्तमान समय...

"तो ये थी तुम्हारी दादी और मेरी पहली मुलाकात। अब समझे शिमला इतना महत्वपूर्ण क्यों है।" संजय जी ने प्यार से पूछा।

"समझ गये दादू। आप और दादी सबसे रोमांटिक कपल हो। कर्नाटक में वो बात कहां जो शिमला में है।" अन्विता ने छेड़ते हुए कहा। उसकी इस बात पर सब हंस पड़े। 

अगले दिन संजय जी और सविता जी निकल पड़े शिमला के हसीन सफ़र पर।

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