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क्या सही, क्या गलत इसका नजरिया हर किसी का अलग होता है। जो बात कुछ लोगो को सही लगती हैं उनका मतलब दूसरों की नजरों मे गलत होता है। निषेध वो कार्य होते हैं जो समाज की नजरों में आपति जनक कहलाये जाते हैं। और जो व्यक्ति ऐसे निषेध कार्य करता है समाज उससे अलग तरह से देखने लगता है। उल्टे हाथ से लिखना, तलाक देना, शराब पीना, शारारिक सम्बंधो की बात करना, महिलाओं का बीड़ी पीना,दिमागी रूप से बिमार होना और अपने ही लिंग के व्यक्ति के प्रती प्रेम भावना होना समाज के कुछ जाने माने निषेध कार्य है। ये कार्य बहुत से लोगों की नजरों में आम हैं पर आज भी हमारे समाज का एक हिस्सा इन सब बातों को पूरी तरह मानता है और अगर किसी को ये निषेध कार्य करते देख लेता है तो उसे समाज से बाहर कैसे करे या क्या सजा दे इस बात पर सोच विचार करता है।

समय के साथ दुनिया बदल रही है हमारी सोच बदल रही है नयी पीढ़ी पुरानी बातों को समझकर उन्हे अपनाना है या नहीं ये तय कर रही है। पहले जो हालात थे वो अब नहीं है महिलाओं को अब हर जगह बराबर की जगह दी गयी है। तो जो काम आदमी का करना गलत नहीं वो काम अगर महिलायें करे तो गलत कैसे ये बात नयी पीढ़ी समझ गयी है। "निषेध" बातें नयी पीढ़ी के लिये तो आम बन गयी है पर पुरानी पीढ़ी और समाज में अभी भी ये बदलाव समझने और अपनाने की हिम्मत नहीं है।

माहवारी और शारीरिक सम्बंध की बातें तो मानो करना कोई जुर्म है ये हम नहीं समाज हमे सिखाता है "की ऐसी बाते धीरे करते हैं सबको नहीं बताते और ये बातें अच्छे लोगों के मुहँ से शोभा नहीं देती"। ये चंद बाते जो हम अपन आस पास सुनते है हमे सोचने पर मजबूर कर देती है की क्या हमारा इन सब के बारे मे बाहर बात करना या किसी को अपनी इन्ही बातों से जुड़ी दिक्कत के बारे मे बताना ठीक रहेगा या नहीं? पर इसका जवाब आधे से ज्यादा लोगों का ना होता है क्योकि वो समाज की बातों मे आकर खुद को उनके अधीन कर देते है ताकी वो अपना जीवन इस समाज में "इज्जत" और "सुकून" के साथ व्यतीत कर सके।

क्यू औरत का तलाक लेकर दुसरी शादी करना बहुत बड़ा मुद्दा बन जाता है पर आदमी का नहीं, क्यू अपने ही लिंग के इन्सान से प्यार करना गलत है पर दुसरे लिंग के इन्सान से नहीं। इन्सान तो दोनों है ना चाहे लड़का हो या लड़की और प्यार तो भावना है जो किसी के प्रति भी आ सकती है और उससे रोक पाना भी हमारे बस में नहीं है। हर इन्सान की अपनी कुछ सुनी और अपनाई निषेध चीज़े है आप अगर उन्हे मानते और अपनाते हैं अच्छा है, पर दूसरों पर दबाव दाल उन्हें भी ये सब मानने पर विवश करना गलत है तो आप जो मानते हैं माने पर दूसरों की सोच में ऐसी निषेध बातों को मानने का गलत भ्रम ना डाले।

मैं वो करूंगा जो मुझे सही लगता है। मैं वो जागरूक निगरिक हूँ जो समाज की बताई और सिखाई गयी बातों को सोच-समझ कर अपनाता और बहस्किरित करता है। तो देश का ऐसा समाज बने जिसपर सभी को गर्व और भरोसा हो।।

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