पूछती है बेटी...
छोड़ बाबुल का आंगन..
जाना जरूरी है क्या..?
जिस आंगन में चहकती थी मैं
जहां सखा सहेली संग खेली.. मैं
वहां से जाना जरूरी है क्या?
आखिर किसने यह रीत बनाई
कि बेटी सदा से होती पराई...?
साथ पिता का क्या इतना ही निभाना था...
बाबुल संग बस इतना ही रहना था...
जिसने कभी आंखों से ओझल नहीं किया
आज मेरे बिना वो कैसे रह पाएंगे...?
मेरी आवाज़ उनकी सुबह की भोर थी
और मेरी नींद उनकी रात ...
भला कैसे रह पाएंगे वो...मेरे बिना
जिनके कलेजे का मैं टुकड़ा हूं
उन्हें छोड़ जाना जरूरी है क्या?
दहलीज पार कभी अकेले नहीं भेजा...
जब जब सहमी ज़माने की भीड़ में
मुझे सीने से लगा लिया
जब जब तीखी नजरों ने मुझे देखा
उनकी आं…