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रूठी हूं खुद से आज,
क्यों कभी खुद के लिए समय नहीं निकाला,
क्यों कभी अपने मन का नहीं किया?
हर वक्त बस बच्चों के बारे में परिवार के बारे में सोचा,
कोई मेरी ममता पर सवाल न उठाए यह ध्यान रखा,
पर आज जब मेरे अस्तित्व पर सवाल उठाया गया,
मुझे मेरे काम का हिसाब देने को कहा गया,
तब मैं क्यों मौन रह गई?
क्यों न कह सकी कुछ,
क्यों नहीं कहा गया मुझसे सबके भलाई का सोचते सोचते,
खुद के बारे में सोचना भूल गयी,
आज मानों मेरे अस्तित्व पर सवाल उठाकर,
किसी ने मुझे गहरी नींद से उठाया है,
ऐसा लगा मानों अरसों बाद खुद से मिली हूं,
न जाने कब से खुद से अनजान थी,
आज वक्त ने जो तमाचा मारा है,
उससे मैंने सीख लिया,
न कोई किसी के लिए है न रहेगा,
हमें खुद के बारे में खुद सोचना होगा,
कब कौन साथ छोड़ दें पता नहीं,
कब अकेले परिस्थितियों से लड़ना पड़ जाए पता नहीं,
इसलिए खुद को हमें तैयार रखना होगा,
किसी का क्यों इंतजार करना,
हम खुद के लिए अकेले काफी है,
बस खुद को यह विश्वास दिलाना होगा,
कि बिना मतलब के न कोई साथ देगा न काम आएगा,
खुद को ही हर मुसीबत का सामना करना होगा,
तो क्यों न शुरू से खुद को तैयार रखें,
ताकि पीछे अफसोस न रहें,
क्योंकि जब लोग साथ छोड़कर जाते हैं,
तब दिल उन जख्मों से भरा ही नहीं होता,
कि लोग हमारे अस्तित्व पर सवाल उठा जाते हैं।