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तुम आजाद हो...
जब लोग कहते हैं तो खुद पर हंसी आती है,
क्या हम वास्तव में आजाद हैं?
क्या हम देर रात काम करके
जब लौटे तो हमें डरने की कोई आवश्यकता नहीं?
नन्ही सी बिटिया सड़कों पर घूम सकती है?
बच्चियां स्कूल बड़ी खुशी से जा सकती है?
लड़कियां सड़कों पर आजादी से चल सकती है?
क्या सच में....
अगर हां तो हम आजाद हैं...
बस कहने के लिए...
क्योंकि न यह सच है और न कभी होगा...
क्योंकि सभी को राजनीति करनी है...
तो किसी को सोशल मीडिया पोस्ट करनी है,
पर उस बेटी के माता-पिता पर क्या बीती होगी,
जिसने अपनी फूल सी बेटी को खो दिया,
न जाने कितने अरमान सजाए थे उसे लेकर,
सब बिखर से गये उनकी आंखों के सामने...
देख बेटी को क्या हाल हुआ होगा उनका...
सोचा भी है...
नहीं..न्याय सिर्फ एक लड़की को नहीं...
वरन् हर घर में बैठी हर बेटी बहन मां को चाहिए,
उस पिता को चाहिए जिसने बेटी को बाहर भेजा,
उस भाई को चाहिए जो अपनी बहन की रक्षा न कर सका,
उस मां को चाहिए जिसने कोख में नौ माह उसको पाला,
उस हर परिवार को चाहिए जहां उसका बचपन खिला...
कोई भी उसकी चीख को न सुन सका..
कितना दर्द सहा होगा उसने...
जब भेडियो ने उसको सताया होगा...।