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जो तुम सोचते हों
वो न मिले तो रो देते हो..

ज्यादा बेहतर की तलाश में
तुम बेहतरीन खो देते हों...

सोचो जो मिला हैं पर्याप्त है,
तो ज़िंदगी हसीन हो..

तुम पैसों की माया में,
रिश्तों को भेंट चढ़ाते हो..

जमीन जायदाद के हिस्से में
अनमोल धन रूपी (माता पिता)को गंवाते हों..

दुख से दुखी हो ईश्वर से प्रार्थना करते..
सुख आते भगवान को भूल जाते हो...

तुम सचमुच मतलब के इंसान..
मोह-माया में बंध जीवन को व्यर्थ गंवाते हों...।

न महल न एक ईंट न लाखों का कारोबार...
न सोना न चांदी न लाखों की दौलत....
न वस्त्र न रिश्ते न मोह न माया
अंत समय कुछ साथ नहीं जाता...
बस जाते हैं आपके पुण्य...
तो क्यों...
ज़िंदगी के अनमोल पलों को गंवाते हों...।

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