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कोई माली से भी पूछे...

बड़े प्रेम और स्नेह से सींचता हैं
वो पौधा...
देखरेख कर करता उसे बड़ा...
पूछो जरा उस माली से
वो दर्द
जब वो पौधा आंखों से ओझल होता हैं...
तो कतरा कतरा दिल का रोता हैं,

भौंरे जब मंडराते थे..
तो सहम जाता था वो
अपनी छांव में पाला उसने वो पौधा..
किसी को छूने नहीं देता था..
आज वही किसी और आंगन में जाएगा...
यह सोच वो कितना घबराता होगा..
जरा कोई उस माली से पूछो...
वो कितनी रात सो नहीं पाता होगा..

क्योंकि
लगाव चाहे संतान का हो या पेड़ पौधें से
बिछड़ने पर
दर्द हर किसी को होता हैं..।

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