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पढ़ती जब जब किसी की कविता,
तो लगता मैं तो अभी सीख रही हूं लिखना,
बहुत कुछ है सीखने को अभी बचा,
पढ़ती जब जब किसी की कविता,
तो लगता मानों उनकी कविताओं के
हर शब्दों में कितनी सच्चाई झलकती है,
मानों लिखावट ही दर्द को बयां करती है,
अन्तर्मन को झंझोडने की शक्ति रखती है,
तो विरह की वेदना मानों स्पष्ट दिखाई देती है,
अभी तो बहुत कुछ सीखना है,
सिर्फ लिखना काफी नहीं होता,
यह आज जाना है,
अपने शब्दों में ठहराव लाना भी आवश्यक है,
महसूस होता है कुछ खामी है,
और बहुत कुछ सीखना अभी बाकी है,
सीखूंगी मैं शब्दों में कैसे लाते हैं ठहराव,
और एक दिन लिखूंगी ऐसी कविता,
जिसमें ठहराव भी होगा और जज्बातों का सैलाब भी,
जिसमें विरह की वेदना भी होगी तो करुणा भी,
जिसमें झकझोर देने वाले संवाद भी होंगे तो कटाक्ष भी,
जिसमें सच्चाई भी होगी तो हास्यास्पद बातें भी।

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