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बोझ तले दब गयी,
कि मैं एक लड़की हूं,
नहीं हक मुझे अपनों सपनों को पूरा करने का,
नहीं हक मुझे अपनी बात समझाने का,
क्योंकि मैं लड़की हूं,
अपनों पर बोझ हूं,
बस इतनी सी पहचान मेरी,
कि मैं एक बोझ हूं,
क्यों हुआ जन्म मेरा आखिर,
जब मेरा कोई अस्तित्व नहीं,
क्यों बनाया हम लड़कियों को बोझ तूने खुदा?
आखिर क्या पाप हुआ हमसे ये तो बता,
क्यों हमारे सपनों को पूरा होने का हक नहीं,
क्यों हमें आसमां में उड़ने का हक नहीं,
क्या हमारा कोई अस्तित्व नहीं,
क्या हम इंसान नहीं,
ऐ खुदा क्यों करता इंसान इतना भेदभाव?
जो सहती नौ महीने पीड़ा,
वहीं बन जाती सबके लिए बोझ,
वहां इंसान,
बहू चाहिए पर बेटी नहीं,
वंश चाहिए पर वंश चलाने वाली नहीं,
क्या है ऐसा बेटों में जो बेटियो में नहीं?
ईश्वर ने सबको एक बनाया,
न कोई अपना न कोई पराया,
न उसने बेटे को वंश कहा,
न बेटी को बोझ,
फिर क्या इंसान खुदा से बड़ा हुआ,
जिसने बेटी का अस्तित्व मिटा दिया।

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