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नारी त्याग की पराकाष्ठा है,
तुम्हें सहनशील बनना होगा,
तुम घर का मान हो सम्मान हो,
तुम्हें चुप रहना सीखना होगा,
घर तुम्हारा मंदिर है,
और चारदीवारी तुम्हारी दुनिया,
तुम्हें घर पर रहना सीखना होगा,
मौजमस्ती से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं,
पढ़ना लिखना तुम्हें छोड़ना होगा,
शादी कर घर परिवार संभालो,
यही तुम्हारा कर्तव्य होगा,
तुम घर की बागडोर नहीं घर संभालो,
बच्चों को संभालो,
यही तुम्हारा उत्तरदायित्व होगा,
किसी की बात का जबाव देना तुम्हें शोभा नहीं देता,
तुम लड़की हो तुम्हें चुप रहना सीखना होगा,
समाज के बारे में सोचकर चलना होगा,
बस...बस...बहुत हुआ अब,
सब कार्य लड़की को सीखने होंगे,
क्या हमें जीने का अधिकार भी नही,
हम भी इंसान हैं हमारे भी अरमान है,
मत भूलो हम आदिशक्ति का अवतार है,
हम सिर्फ हाथों में चूड़ियां नहीं पहनते,
वक्त आने पर शस्त्र उठाने की ताकत भी रखते हैं,
हम सहनशील है तो स्वाभिमानी भी,
हम त्याग की मूरत है तो प्रचंड ज्वाला भी,
हमारे भीतर बहती ममता की करूणधारा है,
तो समाया प्रचंड क्रोध का सैलाब भी,
हम शांत भी है और अशांत भी,
मत जगा हमारे भीतर की शक्ति को,
हम मचा दे हाहाकार वो शक्ति है,
बदल दे इतिहास वो कलम है,
बेशक लड़कियां परिवार का मान है सम्मान है,
पर हम भी इंसान हैं हमारे भी अरमान है,
हमारे सीने में भी धड़कता दिल है,
हम निर्जीव वस्तु नहीं कोई,
हमारे अंदर भी प्राण है,
हमें भी कुछ बनना है जीवन में कुछ करना है,
बेशक घर संभालना हमारा कर्तव्य है,
पर जीवन को पूरी तरह जीना हमारी पहचान है,
हमे भी जीवन मिला है उसको जीने दो,
मत छीनो हमसे हमारी पहचान हमारा अस्तित्व,
हम भी आप लोगों की तरह इंसान हैं।