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मां सिर्फ़ कोई शब्द नहीं,
न इसकी कोई परिभाषा है,
मां तो मां है,
जिनके अंदर स्नेह दुलार की करूणधारा है,
मां शब्द खुद में पूर्ण है,
उसे न उपमा न छंद की आवश्यकता है,
मां तो ममता की मूरत है,
प्यार भरी मुस्कराहट देख लूं मां की,
तो दिन भर खुश रहता हूं,
डांट भी मीठी लोरी सी लगती है,
दौलत जिसके आगे फीकी है,
मेरी मां तो ईश्वर का वो वरदान है,
जो हर किसी के नसीब में नहीं होता,
नौ माह कोख में जिसकी पला,
ममता का अनूठा स्पर्श मां की गोद में पाया,
डांट फटकार भी प्यारी लगती,
हाथ के खाने में छप्पन भोग का स्वाद है,
क्या कहूं उसके बारे में,
जो मुझे इस धरा पर लायी है,
यह खुबसूरत संसार जो मेरी नज़रों के सामने है,
वो उसके आशीर्वाद और प्यार का वरदान है,
खुशनसीब हर वो संतान है,
जिसके सिर पर मातापिता का आशीर्वाद है,
पता नहीं क्यों करते बच्चे उनका ही अनादार है,
छोड़ आते वृद्धाश्रम और समझते उनको बोझ है,
जाकर पूछो उससे उसका दर्द जो अनाथ है,
प्यार भरी ममता के आंचल की छांव से जो दूर है,
मां की डांट से जो रह गया वंचित हैं,
पिता के कांधे पर न देखी जिसने दुनिया है,
प्यार स्नेह दुलार की छत्रछाया से जो रहा दूर है,
दुआ करता हूं रब से,
हर किसी को मिले मां का प्यार।