जब बैठती थी कभी लिखने तब क्या लिखूं इस बिषय पर हमेशा अटकती थी.. फिर कुछ पंक्तियां लिखने के बाद उन पंक्तियों के भावार्थ को समझने का प्रयास करने में घंटों निकाल दिया करती थी..
ऐसे करते करते मेरा मन तरह तरह के विचारों में उलझा रहता था और मैं फिर वही सोच में डूब जाती कि फिर कौनसे बिषय पर मुझे लिखना है..
धीरे धीरे मेरा रूझान उन किताबो की ओर आकर्षित हुआ जो समाज को नयी सोच प्रदान करती है समाज में नया बदलाव लाना चाहती है उन किताबों को पढ़कर उनसे ज्ञान अर्जित कर मैं धीरे धीरे विभिन्न विषयों पर लिखने के प्रति उतसुक होने लगी और इसी दिशा में मेरा रूझान लेखन के प्रति बढ़ता गया..
हालांकि कभी कभी मेरे शब्दों में करूणा वात्सल्यता का भाव झलकता है तो कहीं कहीं लयबद्धता की कमी रह जाती है तो कहीं कहीं शब्दों का सटीक प्रयोग नहीं कर पाती लेकिन मैने इन छोटी छोटी गलतियों से अनुभव किया कि मैं धीरे धीरे अपनी गलतियों को सुधारने में कामयाब होने लगी हूं धीरे धीरे मेरी कविताओं में लयबद्धता का समावेश होने लगा है हालांकि कुछ गलतियां अभी भी शेष है पर कुछ सुधार भी अवश्य हुआ है..,
और इन सभी बातों में मैने यह अनुभव किया है कि हमें लगातार कोशिश करती रहनी चाहिए क्योंकि...
जब तक आप लिखोगे नहीं अपनी गलतियों से कुछ सीखोगे नहीं तब तक आप आगे नहीं बढ़ सकते है।