देख बड़ों को जी चाहता मैं बच्चा ही बना रहूं,
छोटी सी बात को इतना खींचते ये लंबा है,
मानो कोई धर्मयुद्ध का उन्होंने उठाया बेड़ा है,
जहां बच्चों को बड़ों का आदर करना सिखाते हैं,
वहीं बड़े मातापिता की सेवा करना भूल जाते हैं,
जहां बच्चों को सुनाते कहानियां थे,
कैसे रहते थे वो संयुक्त परिवार में,
वहीं अब अकेला रहना चाहते हैं,
जिन्होंने पाला पोसा बड़ा किया उनको ही किनारा कर देते,
क्या पैसे उनसे अनमोल है जो उनको तुम भूल जाते,
अगर करें हम भी ऐसा तो कैसा लगेगा तुमको,
सुनो.. जब तुम बच्चे थे तो वो तुम्हारी उंगली थामते थे,
अब जब वो बच्चे बन गये है,
तब तुम क्यों उनकी उंगली को नहीं थामते,
भूलो मत चक्र का पहिया गोल है,
आज वो स्थिति में कल तुम भी उस स्थिति में होंगे,
प्यार भरी मुस्कराहट और रहो उनके साथ,
बस बूढ़े मातापिता यही तो चाहते हैं,
पोता पोती को वो सुनाए लोरिया,
कंधों पर बैठ उनको सारा जहां घुमाएं,
यही तो उनकी एकमात्र होती इच्छा,
जब बेटा बन जाए उनकी छड़ी,
तब किसी मातापिता को डंडे की जरूरत नहीं,
बच्चों का साथ मांगते बहु को बेटी मानते,
पर क्यों उन्हें तुम अपना नहीं मानते,
वो बोझ नहीं वो बुढ़े असहाय नहीं,
बस तुम्हारे साथ रहना चाहते हैं,
बीते दिनों को याद कर खुश होना चाहते हैं,
तुम्हारा बचपन तुम्हारे बच्चो में ढूंढना चाहते हैं,
क्या चाहते हैं वो आपसे बस थोड़ा सा वक्त,
क्या इतना भी नहीं कर सकते तुम,
सचमुच धिक्कार है ऐसी संतान पर,
इससे अच्छा तो हम बड़े ही नहीं हो,
वहीं उनकी उंगली थामे रहे,
क्योंकि बड़े होकर ऐसा ही बन जाते सब,
तो दिल चाहता है मैं बच्चा ही बना रहूं।