नारी सृष्टि का आधार हैं...
बिना उसके संसार का नियम खंडित हैं...
नवजीवन देती हर नारी...
यह उसकी पहचान हैं...
प्रेम और विश्वास के धागों को सींचती...
ममता के आंचल में समेटती स्नेह...
बच्चों का भविष्य बनाती...
उस नारी की पहचान हैं...
बेटी से बहू बहू से भाभी चाची
मां से सास हर रिश्ते बखूबी निभाती
वो नारी सचमुच महान हैं...
जो टूटकर न बिखरती...
सपने होकर भी खुशियां मूंद लेती हैं...
लेकिन वही नारी
दुर्गा और काली का रूप भी
जो वक्त आने पर शस्त्र भी धारण कर लेती हैं...
यही उस नारी की पहचान हैं
कि वो अबला नहीं सबला हैं
कमजोर नहीं वज्र सी कठोर हैं..
वो शांत भी है और अशांत भी,
जो वार करे उस पर...
उसके लिए तीखी तलवार भी...
रिश्तों का सम्मान हैं...
खुद की वो खुद ढाल हैं...
जो छेड़े उसे कभी...
कर देती उस पर वो वार हैं...
यह आज की नारी हैं...
और यही उसकी पहचान है...।