प्रज्वलित रहे ऐसे वीर की गाथा ,
जो ज़ख्म लगे तब भी गर्जना करे योद्धा ,
अनल जिसके हृदये में देख दुश्मन कांपे ,
ऐसा वीर महान कर्ण का एक दुःख भरी व्यथा।

हर पग हर पल उसने कितने अपनाम सहे ,
त्याग दिया माँ कुंती ने नादानी में ,
बह चला सूर्यपुत्र नदी में एक सूत के घर पे ,
अनजान लोगो ने पाल के बड़ा किया ,
पर क्षत्रिय का खून हमेसा युद्ध को प्रेरित रहा।

सपने लिए वह भी अध्ययन करने गुरुकुल गया ,
क्षत्रियो के गुरु ने जात के नाम पे मना किया ,
अपमानित वह छोटा बालक ज़ख्म का तिलक लगाया ,
क्रोधित वह महँ योद्धा बन जाने का प्रण खाया।

विचलित वह परशुराम के द्वार गया ,
उसकी निपुणता देख परशुराम ने शिक्षा दिया ,
पर हाय यह जात का सच बाहर आ गया ,
ब्राह्मणो को सिर्फ सिखाने वाले परशुराम ने कारण को श्राप दिया ,
की भूल जायेगा वह सारी विध्या जब युद्ध में जरुरत होगी।

पर तन से जो बलिष्ठ , स्वाभाव से वह बड़ा दानवीर ,
चला गया क्षत्रियों के बीच खींचने इतिहास में लकीर ,
जब दिखला था अर्जुन अपने कला का उत्तम जोहर ,
उसके तीर का जवाब देके मचा दिया एक हाहाकार।

कर्ण के दर्शन से हुए सब दर्शक स्तब्ध ,
मंत्रमुघ्द हुआ पूरी सभा देख ऐसा वीर ,
गर्जना करके बोलै हे अर्जुन गर्व न कर महल के फूल ,
अपने हर बाण से कर सकता हूँ तुम्हारी ख्याति धूल।

सुन ऐसा ललकार वीर अर्जुन भी हो गया युद्ध को तैयार ,
सभी वीर महान एक दूसरे को देखे यही कैसी विपत्ति भारी ,
रोकना होगा इसे कैसे भी नहीं तो होगी क्षत्रियो की बदनामी।

उठ खड़े हुए कृपाचार्य बोले "यह अर्जुन है राजवंश का संतान ,
चुनौती इसे दे सकते जो इसके जात के समान ,
इसलिए हे वीर अदुभुत तुम भी दो अपने कुल का पहचान ,
तब हम भी देखेंगे दो वीरो का युद्ध महान।

सुन यह वचन सैलाब बह चला सुरमा के आँखों से ,
आँखें नीचे और खोजता वह नीचे अपना पहचान धुल में ,
आँख ऊपर करके एक जोर सा गर्जना की ,
सभा की और ऊँगली दिखा अपने धनुष की टंकार सुनाई।

"हे वीरो की सभा , कैसे कुल के नाम पे यह परीक्षा ,
क्या जरुरी है बड़ा कुल होना जब हो अच्छी शिक्षा ,
हाय मेरी जात कहलाता हूँ में गर्व से एक सूत पुत्र कर्ण हूँ ,
मेरे शास्त्र और शस्त्र दोनों में बहुत निपुण हूँ।

" हे वीर द्रोणाचार्य , व्योहवृद्ध भीष्म यह कैसी है मेरी परीक्षा ,
आज जाती का मोल है फिर क्यों ली मेने ली इतनी शिक्षा ,
न मांगू में कोई पिता की कुल न मांगता में कोई राज्य की भिक्षा ,
मुझे दो युद्ध करने का मौका अब और नहीं होती मुझसे प्रतीक्षा।

कृपाचार्य जी बोले युद्ध का नियम कुछ कहता है ,
यहाँ सिर्फ राज्यों के बीच परीक्षा होता है ,
क्या तुम हो कही के अधिपति या अधीन तुम्हारे कोई राज्य है ,
तो आगाज़ करो अपने युद्ध का हमारा अर्जुन भी तैयार है।

देख यह मौका दुर्योधन ने एक गर्जना की ,
" हे सभापतिओ हे महान लोगो तुम कैसे कर सकते अपमान ,
यह रतन है अनमोल , फिर क्यों पूछते हो एक सुरमा का जात ,
अगर नहीं यह ऊँची जात का , तो क्या नहीं है इसका अधिकार ,
लो बनाता हूँ इसे अंग प्रदेश का राजा सुन ले यह समस्त संसार।

देख यह कारण आँखों से प्रेम आँशु बहाये ,
मित्र बोल के अपने प्राण दुर्योधन के नाम किये ,
अनजान कारण की वह सामने उसके अपने पांडव भाई है ,
शायद इतिहास में इसलिए है महाभारत ग्रन्थ महान।

पांडवो को एक पल कारण नहीं सुहाता था ,
हर पल हर पग पे कारण अपमानित होता था ,
न जाने कारण को माँ कुंती से क्या लगाव था ,
आँख से आँशु बह जाते ममता से भर जाते कर्ण के आँखों में।

हुआ जब मौका द्रौपदी के स्वयंभर का ,
तब भी अपमानित हुआ वह भरी सभा में,
यह क्रोध का फायदा दुर्योधन विष बना के कारण को जलाता रहा ,
एक वीर का साथ पाकर दुर्योधन फूलो समाता रहा।
द्रौपदी के चीरहरण में भी मौन खड़ा कर्ण था ,
पांडवों के सवाल पे कर्ण तब भी अधर्म के साथ था ,
तब महाभारत होने का आगाज़ हुआ था ,
अपनों के खिलाफ युद्ध का ऐलान हुआ था।

युद्ध के दिन चल रहे थे , कर्ण के तांडव से सब स्तब्ध रह गए थे ,
तब कृष्णा जी मुस्कुराये और युद्ध के बाद कुंती से अकेले मिलने गए थे ,
बता के सच्चाई कारण स्का खोया पुत्र है सब पांडवो का बड़ा भाई था ,
सुन के कुंती रो पड़ी , बिना एक पल गवाएं कर्ण से जा मिली।

सुन के सच्चाई कर्ण के आँशु बहे ,
युद्ध रोकने की प्रार्थना से पर कर्ण अलग हुए ,
बोले जिस माँ ने ठुकराया , पर एक मित्र ने साथ दिया ,
पर में एक वचन देता हूँ , पुत्र आपके पांडव ही कहलायेंगे।

देख यह कृष्णा ने इंद्रा का ध्यान किया , कर्ण के कवच का दान मांगने को कहा ,
इस तरह कारण ने दान किया , और कृष्णा के मुख पे मुस्कान उठा ,
तब जाके कर्ण का अंत हुआ था , मृत्युशैया पे कुंती के गॉड में सोया था।

सच जान के सरे पांडव रो पड़े , युधिस्तर ने क्रोधित माँ को श्राप दिया था ,
अंतिम संस्कार भी हथेली पे हुआ , पर कर्ण का दुःख जीवनभर उसके साथ चला था।

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