पहली महिला ( दहेज पीड़ित )
मर्यादा की साड़ी पहने अपने ज़ख्म को छिपाती हूँ,
मायका नहीं अब ससुराल को ही घर समझती हूँ ,
बदन में ना जाने कितने दाग है जलन के ,
हँस के मायके में ससुराल का गुणगान करती हूँ ,
क्या में इससे कमजोर हो गयी या समाज में मर्यादा बचाती हूँ ,
क्या लक्ष्मी पूजन से सिर्फ समृदि मिलती है ,
दुर्भाग्य मेरा में क्यों पराया धन कहलाती हूँ ,
आप बताओ क्या में गलत हूँ , गलत हूँ ?
दूसरी पीड़िता (बलात्कार)
यह कैसा समाज है जो मुझे दोषी मानता है,
क्या योनि में ही इज्जत होता है,
गलती पराए की फिर अपने मुझे देख के दुखी क्यों होते है,
इस पीड़ा से निकलने में क्यों मेरी मदद नहीं करते है,
में भी तो एक सपना बुना करती थी,
समाज में नाम करने के लिए मेहनत करती थी,
वो रात तो दर्दनाक थी पर उसका इंसाफ तो हो चुका है,
पर क्यों यह समाज मुझे देख के भी अनदेखा करता है,
मर्द जात से क्या बोले जब अपनी नारी जाति मुझे अपना रही,
हर कदम हर लम्हा हर दिन मुझे अलग होने का एहसास करा रही,
क्या इतना बताओ क्या मेरी गलती थी , क्या मेरी गलती थी।
तीसरी पीड़िता ( भेदभाव)
घर की रोटी और दाल तो मिलकर सब साथ खाते है,
फिर जिम्मेदारी का काम आखिर मर्द ही करे ऐसा क्यों कहते है,
क्या मेरी योग्यता मेहनत से और नही निखर सकती,
में क्या अपने मां बाप का खर्च नही उठा सकती,
लक्ष्मीबाई की कविता पढ़ के अपनी लक्ष्मी को बाहर जाने से रोकते हो,
काम के मामले में हमारा वेतन मर्दों से क्यों कम रखते हो,
आखिर चीरहरण में भी तो पांडव चुप ही बैठे थे,
सीता के देहत्याग और समर्पण आखिर एक औरत से क्यों मांगते है,
मांगने पे अपना हक एक तमाचे से मुख बंद कर दिया जाता है,
कार्यक्षेत्र में तरक्की देख मेरे लिए रिश्ता क्यों खोजा जाता है,
क्या में गलत हूं , यह बताओ समाज क्या में गलत हूं ?
चौथा पीड़ित( बाल उत्पीड़न)
याद करता हूं बचपन तो रो देता हूं,
हर रात कोई आहट से में कपकपा उठता हूं,
वो इंसान मुझे गोद में बिठा के कहा कहा नही हाथ लगाता था,
में सहम के सच बोलता तो मां - बाप मेरा उपहास किया जाता था,
किसको बताता में आखिर कब तक सहता में,
खिलोने देने के बहाने हर दिन वो मेरा शौषण करता था,
इतना बार बताना चाहा तब भी हर कोई अनसुना करता था,
आज में मानसिक बीमारी से जूझ रहा और खुद अकेला पड़ा हूं,
ना कोई देखने आते और मां बाप भी मुझे संतावना से देखते,
क्या में गलत था , क्या में इस जिंदगी के लायक था, बताओ क्या में गलत था ?
पांचवा पीड़ित ( मां- बाप)
बचपन से जिन कंधो ने तुम्हे उठाया, ९ महीना जो तुम्हे दर्द से पाला,
आज हमसे अलग होके क्यों दूर हो रहे, इस बुढ़ापे में क्यों विष का प्याला पीला रहे,
क्या मेरी रोटी और सब्जी अच्छी नहीं थी, या बाप के जेब में तुम्हारे लिए कमी थी,
क्या हमने कभी तुम्हारा सर नीचे होने दिया, करी धूप में पसीना सुखा के तुम्हारा हर शौक पूरा किया,
आज चीखते हो हमारे ऊपर ज्यादा खर्च होने पे, हिसाब मांगते हो ज्यादा खर्च होने पे,
क्या हमें सुकून का हक नहीं , तुम्हारे पास हमारे लिए वक्त नहीं,
किस बात की सजा मिल रही हमे, यह बताओ किस बात की गलती हमारी ?
छठा पीड़ित ( मर्द)
जिम्मेदारी उठाने के लिए अपना घर छोड़ना पड़ता है,
रसोई में कच्चा पक्का खा के कुछ पैसे घर भेजना होता है,
कभी बीवी कभी बहने तो कभी मां सब के शौक को ध्यान रखना पड़ता है,
फिर भी हर रोज सब का ताना सुनना पड़ता है,
कोई लड़की जो टकरा गई रास्ते में तो हमें ही क्यों दोषी पाया जाता है,
नियम कानून का पाठ हम मर्दों को ही क्यों पढ़ाया जाता है,
क्यों एक की गलती से हम मर्दों को बदनाम किया जाता है,
जो खुद से ज्यादा तुम्हे प्यार करता हो उसका फायदा ही क्यों उठाया जाता है,
अब कोई बताए जरा , क्या हम गलत है , क्या हम गलत है ?
सातवा पीड़िता ( घरेलू हिंसा )
क्या प्रेम का अर्थ सिर्फ साथ में संभोग करना होता है,
मना करने पे जबरदस्ती करना होता है,
क्या मेरी ऊंची आवाज को नीचा करने के लिए हाथ उठाना पड़ता है,
यह समाज क्यों हर बार एक औरत को ही समझोता करने बोलता है ,
क्या मुझे एक इंसान के तरह जीने का हक नहीं , घर के फैसले में बोलने का हक नहीं,
यह इंसाफ अगर में मांग रही , तो बताओ में कैसे गलत हुई , में कैसे गलत हुई।
आंठवा पीड़ित ( बेरोजगारी )
बेईमानी से कही घर बस रहे, नेताओ के घर आलीशान हो रहे,
अमीर का बेटा हंसता है , गरीब का बच्चा मेहनत के बाद भी रोता है,
कैसे बेच रहे नौकरी बाजार पे , खरीद रहे लोग इससे आचार के भाव में ,
कैसी तंगी है इतने मेहनत के बाद भी , हो गई भी नौकरी फिर भी इतनी देर है,
क्यों हम नही रोएं क्यों नही हम लोग आवाज उठाए , फिर डंडे से क्यों अपमान सहे,
क्या आवाज उठाना गलत है , यह बताओ आज क्या हमलोग गलत है?
आखिरी पीड़ित ( जात और धर्म)
संविधान में ऊंच - नीच नही फिर सड़को पे यह दंगा करना कैसे सही,
साथ लड़े जिस आजादी के लिए साथ मिलकर , आज हिंदू - मुस्लमान में तकरार कैसे सही,
रक्त का रंग तो लाल ही होता है , आसमान हर किसी का नीला ही होता है,
घर परिवार सब को चलाना होता है, आखिर पैसे का रंग भी एक ही होता है,
क्या यह नौजवानों को करना शोभा देता है , देश का बांटना क्या अच्छा लगता है,
क्या में इस जात और धर्म के खिलाफ खड़ा हूं तो गलत हूं, क्या में गलत हूं ?
ना जाने कितने कंगन टूटे है चौखट पे ,कितने सुर्ख आँशु बहे माताओ के ,
तिरंगे पे लिपटे पार्थिव वीर का शरीर जब लौट के आता घर पे ,
चीखे निकल जाती है परिजनों के ,मूर्छित अवस्था में बेहाल यह दृष्य देख के ,
पर ओह हो क्या सीना तान जवान के खून सीना चौरा कर आगे आते है ,
अभी तो बरषि भी नहीं हुई , देश के सेवा में लगने को तैयार हो जाते है।