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मेरी कलम आजकल कुछ भी लिख डालती है ,
सच से ज्यादा और झूठ से कम चलती है ,
जो जो बातें में कह नहीं सकता ,
वह बातें मेरे कलम की स्याही कर जाती है।

बिलखती बेटियां की दास्ताँ लिखती है ,
बलात्कार और शोषण पे लिख के नीब टूट जाती है ,
हाथ मेरे काँप जाते है जब एक दुखी माँ-बाप का चेहरा सामने आता है ,
चीखती हुई माँ और चुपचाप गमगीन बाप अपनी मरी हुए बेटी को बदनाम हुआ देखता है।

किसान मांग रहे इन्साफ पर हर कोई अनसुना कर जाता है ,
जवाब नहीं मिलता इन गरीबो को पर सियासत को एक मुद्दा मिल जाता है ,
मेरी कलम मुझसे ही सवाल पूछती है तू भी क्या -क्या लिखता है ,
खुद को बदनाम है ही अब क्या तू मुझे भी खोना चाहता है।

चलो रात हुई मान ली अपनी कलम की बात ,
लिखता हूँ नौजवानो के लिए मेरे ज़ज़्बात ,
एक वक़्त का जब था देश भरा पारा था सच्चे देशभक्तो से ,
अब डूबी रहती इनकी जोश नौजवान नशे 
में बर्बाद है ,
कुछ तो अच्छा काम कर रहे और कुछ तो आगे जा रहे ,
पर दुख तो यह है की कही ज्यादा बर्बाद है ,
सुधारना होगा इनकी सोच को ए कलम ,
तब जाके होगा हिंदुस्तान आबाद।

बीमारी सी फैली और चारो और ,
बेईमानी की बस्ती आग लगा के पी रहे शराब ,
वीर क्रांतिकारिओं का मेहनत हो रहा बेकार ,
 टुटा रहा एकजुट हिन्दुस्तान का ख्वाब ,
हथियारों के नाम पे नाउम्मीद मोमबत्ती लेके मोर्चे पे चले है ,
अफ़सोस के ज़माने पर अहिंसा का रुख 
पकड़ा है।

नारी छोड़े तो वह बेवफा है ,
हर शायर की शायरी में बदनाम है ,
सब बातें झूठी है और तकलीफ़दे है ,
सच है हम पुरुष नाकाबिल है ,
वह माँ है , पत्नी है और किसी की बेटी ,
सारे फ़र्ज़ निभाई फिर भी बदले में कुछ नहीं मांगती ,
सब चीज़े हमे पता होती है , फिर भी हमे सच्चाई क्यों नहीं दिखती।

सुनसान सड़के अब अकसर डरा देती है ,
मंज़िलें कैसे पूरी होगी यह सवाल हिम्मत पूछती है ,
इंसानो में अक्सर हैवान घूमते है
सपने छोड़ो यहाँ तो हमारी इज़्ज़त और जान दोनों चली जाती है।

लफ्ज़ो में फाँसी लग जाती है और सच लहुलहान हो जाती है ,
जब एक माँ समाज के डर को आपके इज़्ज़त से आगे रखती है।

चुपचाप बंद कमरों में बैठ जाती और तकिये से मुँह छिपाती ,
दरवाज़े की छिटकनी अचानक खुलजाने के डर से में नहीं सो पाती।

काम के बहाने वह अक्सर पास बुलाता था ,
ना -जाने क्या- क्या देख लेता था ,
माँ कहती थी सलवार सूट पहन के जाया करो ,
उनको क्या बताऊ वह हैवान इनमे भी दरार ढूंढ लेता था।

थोड़ा धुप में पसीना सुखाना होगा , तो कभी खुद को समझाना होगा ,
आँशु , तड़प या नींद सब भूलना होगा , मंज़िल के लिए संघर्ष करना ही होगा।

बुढ़ापे में क्यों अपने माँ -बाप से क्यों खर्च लेता है ,
ऐसा क्या कमी जो तू खुद का जिम्मेदारी नहीं लेता है ,
खुदा की तराशा हुआ इंसान है , फिर तू किस्से डरता है ,
सब बहानो को छोड़ संघर्ष क्यों नहीं करता है।

इतिहास गवाह है संघर्ष की कहानी ,
कितनी मुश्किलें आये किसी ने हार नहीं मानी ,
हिंदुस्तान की संघर्ष है अपने आप में एक कहानी ,
उठ संघर्ष करो और मनाओ दुनिया को अपने दीवानी।

और अंत में
लिखू अपने कलम से कुछ ऐसा , जगे लोगो में आक्रोश और देशभक्ति ,
हर जगह हो रोज़गार और आज़ादी ,
लिखू में अच्छा-अच्छा ऐसी हो हमारी एकता में शक्ति।

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