Image by cevena24 from Pixabay 

यह कैसा तूफ़ान है , हर जगह अपनाम की धूल है ,
जीवन यापन पे सवाल है ,बिन लक्ष्य तेरे जीवन का क्या आधार है ?
फसल उगते है किसान के मेहनत से ,मौसम नहीं खुद पे भरता आत्म विश्वास वह,
छाया नहीं धुप पे सिखाये पसीना वह ,सुख के जीवन के लिए मेहनत करता वह।

जिस ठण्ड में तुम आग जलाते ,उस मौसम में वह रात गुजारते ,
देश की सीमा को बचाते ,बिन गर्दन का मोल लिए शहीद होते ,तब जाके वह जवान कहलाते।

इतिहास गवाह है वीर महानो का ,आओ तुम्हे सुनाओ कविता प्रेरणा और लक्ष्य का।

आरम्भ था वह त्रेता युग का ,था वह युग सत्य-असत्य ,धर्म -अधर्म , पराक्रम और आसुरिक बल का ,
पुरषोतम राम के जीवनी का बलिदान का , सीता माँ के अग्निपरीक्षा का , अपने पवित्रा का न्याह करना ,
महा ज्ञानी दशानंद का मृत्यु होना , भाइयो का प्यार , मात -पिता के हर आदेश का सम्म्मान ,
ऐसा महायुद्ध , ऐसा पराक्रम , हनुमान का समर्पण , था वह रामायण जिसे भूल चूका है आज का युवाजन।

सलिल हो या पारावार या कोई व्योम , सुमन हृदये के साथ प्रबल शक्ति के साथ चले थे राम -लक्ष्मण ,
वनवास में सीता माँ के सुरक्षित हेतु न सोये कभी लक्ष्मण , सुग्रीव को वापस दिलाया उसका शासन ,
जटायु की मृत्यु होना करने हेतु सीता माँ का रक्षण , मृत्युशैया पे लक्ष्मण को ज्ञान देता दशानन रावण ,
इतना ज्ञान , बलिदान और उत्तम भंडार रामायण , फिर भी उधारण को अंधे हमारे नौजवान।

जब बढ़ गया था अधर्म और था पाप का विचरण , कंश का अधर्म और चिंतित थे पुरे प्रजाजन ,
एक भविस्यवाणी ने कर दिया कंश की चिंतित , तिमिर कर दिया देवीकी और वासुदेव का सम्पूर्ण जीवन ,
देखती रहे वह मृत्यु अपने पुत्रो का वचनबद्ध वासुदेव दे , पर विष्णु अवतार ने दिखाया चमत्कार जब गर्व अपनाया
रात्रि में चमत्कार से कारागार के द्धार खुल गए , रक्षण हेतु स्वयं समुद्र , शेषनाग सब वशुदेव तक लक्ष्य को चल दिए।

तट पे खड़े मिले नन्द बाबा , कृष्ण लीला का सौभागय प्रपात होता स्वयं यशोदा मैया को ,
कंश के भेजे सारे असुर एक एक करके मृत्यु को पाते गए , कंश को जीतेजी चिता का दर्शन होने लगे ,
राधा कृष्णा का क्या प्रेम था , वंशी कृष्णा की और राधा का नृत्य से रसमय पूरा वन था ,
बलराम कृष्णा का मथुरा जाना हुआ , कंश का वध कर एक न्याह , धर्मं का स्थापना हुआ।

द्वापरयुग के नाम से युग था , एक ही परिवार में जन्मे धर्म-अधर्म का आपस में विचरण था ,
दुर्योधन के अधर्मो से विचलित हर कोई था , पांडवो के साथ अधर्म का कोई सीमा नहीं था ,
व्योहवृद्ध पितामह , द्रोणाचार्य न जाने कितने वीरो के सामने द्रौपदी का चीरहरण दृश्य भयावह हुआ था ,
धर्म के रक्षण हेतु , अपने अधिकार के प्राप्ति हेतु महायुद्ध , महासंग्राम महाभारत का आगाज़ हुआ था।

धर्म अधर्म के युद्ध में सर्वनाश की संका थी , वीर धनुधर अर्जुन परिजनो से यद्ध करने के ख्याल से विचलित था ,
तब विराट हुआ वह रूप , जिससे देख के सब नतमस्तक हुए , इस देश को संस्कृति में तब गीता उपदेश का जनम हुआ था ,
सर्वनाश हुआ ,हृदये में ज़ख्म का मेला लग गया , दोनों पक्षों में एक आँशु , व्यथा का सैलाब था ,
अंत जब हुआ था तब सारा कुरुक्षेत्र लाल हो गया था , गांधारी का श्राप तो स्वयं श्रीकृष्ण ने प्रसाद समझ ग्रहण किया था ,
गीता का उपदेश आज भी जीवन में उतार लो , हे नोजवानो अपने देश के ज्ञान से कुछ सीख लो।

अब आ गया राजाओ का युग , मौर्यो , गुप्ता , चौहान , मुघलो का युग ,
वीरता का परिभाषा , एक वार से शेर को काटने का शौर्य ,
रख्त समर्पित पूर्ण स्वराज को , वीरता का स्वराज स्वयं वीर शिवाजी का ,
महाराणा प्रताप का अकबर के दिल में भय पैदा करने का , एक संपूर्ण इतिहास का वर्णन है।

भव्य मंदिरो के निर्माण को , लोगो के सुविधा को निर्मित विविन सुविधाओं को ,
मुग़लो के परिचय को , महान तेजस्वी विधुसको बीरबल और तेनाली को ,
गुरु गोविन्द सिंह तो लोगो के अपने गुरु नानक को ,
वीर शिवजी तो झांसी के रानी के बलिदान को।

तब आयी गुलामी की पीढ़ी , जब विदेशी अंग्रेज़ो ने लाया जुर्म की आंधी ,
हर दिन शीश झुकाते और ग़ुलामी करते , औरतो के शोषण पे सरे मर्द चुप्पी साधते ,
पर परिवर्तन आया जब मंगल पांडेय ने १८५७ पे एक नया विद्रोह लाया ,
फांसी को चढ़ गया वह , पर आगाज़ कर वह जंग का एलान कर गया वह।

दुल्हन को आज़ादी मान निकला वह , केसरी वह भगत सिंह जवानी में मृत्यु पा गया वह ,
नेहरू जी तो कभी गाँधी जी तो कभी गए सब पूरा करने आज़ादी के लक्ष्य को ,
अंत पे आज़ादी मिली , कितनी वीरो के रख्त बलिदान कर इस सुबह को शोभित किया है ,
आज देखो हमारे नोजवानो को , आज के नोजवानो ने देश को कैसे कलंकित किया है।

जिम्मेदारियों के लिए फुर्सत कहां, देशभक्ति के लिए जोश कहां,
मशाल आत्मविश्वास का भोजिल है, खून कम मिलावट का पानी है,
कहते है हम आज के नौजवान है , पर इतिहास की नही याद इन्हे कहानी है ।

अब के जवान में जोश कहां, नशे के लत में अब बेचारों को होश कहां,
मूर्छित अब है सब की ज़िम्मेदारी , आलस जिस्म में लेता है अंगराई,
नंगेपन और इज्जत का बाजार में सौदा है, आज के नौजवान में जोश कहां है ।

आसानी से क्रांतिवीरो पे सवाल उठाते है, यह सांसें उनकी देन है क्यों भूल जाते है,
वो जोश वो पगड़ी जिसकी दुल्हन आजादी थी, वीर भगत सिंह ने भरी जवानी में घर छोड़ा था,
मां बाप से किया एक वादा आहा क्या अनूठा था, बहु आजादी को लेके जो घर लौटना था,
अरमानों को जमा कर कचरे के समान फूंक दिया, इंकलाब जिंदाबाद के नारे से पूरा मुल्क नहा गया ,
वो जेल के दीवार पे सर रख मां भगत की आवाज सुनती, वो रंग दे बसंती चोला गाते गाते सूली चढ़ गया,
ऐसे नौजवानों ने एक नीव रखी, आज कल तो बस उम्मीद मोमबत्ती से रखी।

पढ़े लिखे होके आज कल वो भी इतराते है, स्वदेशी का ज्ञान नहीं पर विदेशी पे घमंड है,
गिनती उनको अंग्रेजी में ही आती है, हिंदी गिनती सुन इनके होश उड़ जाती है,
अपने विचारधारा अपने ही देश के खिलाफ रखते है, विद्यालय में हिंदुस्तान मुर्दाबाद गा के चुनाव में खड़े होते है,
बिकने को तैयार बैठे है कोई मिले तो सही , आजादी से अच्छा इन्हे गुलामी ही सही ।

खिलाफ बैठे है एक दूसरे के ,कोई जात तो कोई धर्म के धंधे पे,
बलात्कार तो कही जलती चिताएं है, बंध कमरे पे प्यार का अपमान है,
जो नौजवान शीश उठाए दुनिया बदलने को,उसको रोकने वाले हजारों है,
पुण्यवेदी पे चढ़ने को कोई बलिदान नही है,भारत मां को अब किसको फिक्र है।

पहनवाहा विदेशी है और संस्कार भी विदेशी है, सच बता ऐसा क्या हमारे धरोहर में तुमने कमी पाया है,
नौजवान जाते हैं बाहर अपने देश में कमी बता के, तुमने क्या किया इनके खातिर इतना सर्वज्ञानी बन के,,
हमारा इतिहास विज्ञान से लेके विचार तक आधुनिक था, उससे सूखने वाले और चुराने वाले बाहर के थे,
अनजान अपने इतिहास से नौजवान देश को कोसता है, आंसु बहते होगे स्मारक से क्या इनके लिए आजादी पाया था ?

कहां मिलेगी पसीने में खाना बनाती मां, अपने साड़ी के किनारे ममता से पसीने पौछती मां ,
कांपते हाथो से भोजन में स्वाद डालती मां, मसाले के सुंगध से प्रसन्नता का एहसास कराती मां,
कहां मिलेगा वो बाप जो सबकुछ गंवा दिया, तेरे बुढ़ापे तक तेरे लिए खड़ा रहा,
खुद को नौजवान कहता है और आजादी चाहता है, मां बाप को छोड़कर कौन आबाद रहता है ?

हमारे वीर नेता तो कभी वीर क्रांतिकारी से सीखो ,रामायण और महाभारत से औरत का सम्मान ना करने का परिणाम सीखो,
इतनी एहसास रखो अय्याशी को अपने से दूर रखो, मन को शांत रखो पुरातन काल से योग सीखो,
मार्गदर्शन के लिए वेद पढ़ो और ग्रंथ पढ़ो , खुद को साबित कर एक नया हिंदुस्तान लिखो।

शर्म से पानी पानी क्यों नहीं होते , सोशल मीडिया के चक्कर में सच से अनजान।क्यों रहते ,
वो तो जेल के दीवार पे जिंदाबाद लिखते थे, इतना यातनाएं से के भी वीर नौजवान जोश में रहते थे,
खुद को आज के नौजवानों ने कमजोर कर लिया, इश्क ना मिला तो आत्महत्या कर लिया,
है नौजवान बनो जिम्मेदार देश को आगे बढ़ाओ, महान देश के महान पुत्र बन के दिखाओ।

तुम्हे शर्म जो तुम संस्कार नहीं समझते , औरतो के अत्याचार पर मूक क्यों धारण करते ,
सर्कार चुनते फिर क्यों दोष करते , शोषण और गरीबो पे जुर्म को चुपचाप देखते ,
सीखो अपने संस्कारो से , विविन उधारण को उतार अपने जीवन को दिशा दो। 

.    .    .

Discus