नमन है हृदय से , कलम लिखता है गुणगान,
भारत मां के सपूत, आओ वापस जगाओ हिंदुस्तान,
देखो कैसे तुम्हारे सींचे फसल बर्बाद हो रहे,
तुम्हारे रक्त से लाल मिट्टी सफेद हो रहे ।

तुम क्यों नहीं आते वापस, शेर हिंद भगत सिंह,
खोजता हूं शब्दो में, स्याही में मिलता आंसु हर दिन,
कुपित होकर रोता हर दिन, याद आती आपका बलिदानी जीवन,
दुल्हन को आजादी मान निकले थे घर से, फिर कैसे मनाए खुशियां आपके बिन,
क्या चित्र है आपका ,क्या आंखों में क्रोध है आपका,
इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा, जोश भरता है हर रक्त का,
मौजूदा हालात जैसे जलता चिता है, आपका स्मारक अब जाना क्यों रोता है,
वो मशाल में अब रोशनी नहीं है, माफ करना सिंहजी अब किसी में देशभक्ति नही है।

क्यों वो आखिरी गोली खुद को मारी, आजादी आपके बिना फैल रही गुलामी की महामारी,
सियासत ने खीच रखी है लकीरें, ऊंच नीच के जंग में बरस रही लहू के छींटे,
जबरन हो रही कानून और दलाल है सरकार, मानो जैसे कोई पागल जानवर मचाता हाहाकार,
लौट आओ आजाद जी ,पंडित जी, उठा के हथियार मार्ग सत्य का दर्शन कराओ जी।

देखो कैसे लाचार पड़ी है, अंडाकार में खुद को समेत कर ,
मांग रही इन्साफ देखो , पुतलो और लकड़ी से बने कटघरे से ,
पूछा जा रहा हर सवाल , कभी चरित्र और पहनावे पे बवाल ,
देवी रूप तो घर घर पूजी जा रही , शाम होते ही रोंदी जा रही ,
लौट आओ आए मणिकर्णिका काली अवतारी दुष्ट संहारिका;,
दिखाओ आज के नारी को सिखाओ युद्ध कौशल और खुद को सुरक्षित रखने की ताक़त ,
दृश्य का वर्णन कर स्वयं मुख से , दिखाओ आज के नारिओ को कैसे बने आप अंग्रेज़ो की आफत।

ऊंच नीच तो अभी भी है , काले -गोरे पे बहस अभी भी छिड़ी है ,
सोशल साइट्स पे कुछ देश्द्रोहिओं ने अम्बेडकरजी को भी गाली दी है ,
वह वक़्त का ज्ञान धुन तुम्हे , आंबेडकर जी के जीवन का विस्तार दू तुम्हे ,
न कुँए से पानी भर सकते थे , भोजन , विधा अर्जित करने भी थे बंधन ,
यह देख स्थिति आंबेडकर जी माफ़ करना मूर्खो वह डॉ. बी र अम्बेडकर मशीहा थे।

दौर आया अहिंशा का जन्म हुआ , महात्मा गाँधी जी का आंदोलन शरू हुआ ,
देखो अनपढ़ नोजवानो ने भी कैसे गांधीजी को भी बदनाम किया ,
पढ़ो इतिहास पढ़ो किताबें उठाओ हर धर्म का ज्ञान का आदान प्रदान करो।
यह जो सोशल साइट्स और मीडिया जो है इनको थोड़ा अनदेखा करो।

आओ नोजवानो आवेग प्रज्वलित करे ,
मशाल हाथो में लेके नवनिर्माण करे ,
हिंदुस्तान जो बढ़ रहा है अंधकार की हो ,
उजाले का इंतज़ाम अब हमें ही करना होगा।

आकुल है मां सिहर - सिहर होती व्यथा है,
देख अपने कपूत को जिसका अभिलाषा लालसा है,
तिमिर होती जा रही अब प्रकाश की चिंता है,
नौजवानों को अब एक जागरण की आवश्यकता है।

वंशी से कोई ऐसा रागिनी छेड़,
जैसे मुग्ध हो जाए तृण , तरु ,लाता , अनिल ,
तान - तान वो गान में देशभक्ति गुणगान हो,
सुन ऐसा कलरव समुंदर में भी हलचल हो।

भुवन अभी तिमिर की और बहता है,
आकुल भारत सुरमाओ को पुकारता है,
सुप्तावस्था में जो तुम्हारा प्रबल निर्बल है,
प्रार्थना कर तुम्हे लक्ष्य की और बढ़ने बोलता है।

क्या तुम अगेय नहीं या हो रजकण समान ,
या फिर हो युद्धधर्म में गर्जना करता मृगराज,
ऐसे गान सुनके जागो हो मेरे भारत के केसरिओ,
इतिहास के आंसू जो रोए क्या भूल गए तुम बलिदान ?

अस्मिता लूट रही नारियों की तो कैसे घर बैठो हो,
नाउम्मीद मोमबत्ती से कैसे इंसाफ की कल्पना करते हो,
सूरमा हो या कायर जो घर पे बैठ टिप्पणी करते हो,
सुकुमार तो नही हो या कोई या कोई मर्मर हो ।

क्या तुम सिर्फ यौवन हो या भूल चुकी अपना इतिहास हो,
दूसरे पे निर्भर हो यह तो समस्त नारीजात का अपमान है,
उठाओ अपने व्यथा का बीड़ा और बनो काली दुर्गा,
नारी की ताकत दिखाओ, इस संसार पे विजय पाओ ।

वर्षो से अपना परिचय खोज रही,
मर्यादा के खातिर कुर्बानी दे रही,
है कीमत वो बड़ी दे रही,
जुर्म सेह कर न जाने क्यों नारी होना सीखा रही,
अब वेदना की चीत्कार जैसे ज्वाला बन रही,
अंदर से आत्मा मशाल क्रोध का जला रही,
अब मांग का सिंदूर अब मिट जाना बेहतर है,
ऐसे अर्धांगिनी से मृत्यु से अच्छा मुझे विधवा शोभित है,
आई है एक प्रचंड सी वेग आएगी ,
बरसो से बुझी आग जो क्रोधित सुगबुगा उठी,
पूछे है सवाल नारी का अस्तित्व क्या ,
हा वही जिसने तुझे अपने अंग से अलग किया,
नो महीने मुख जवान से तेरा भरण - पोषण किया,
है जब तू निकला असीम पीड़ा से आज तूने अपनाम किया,
मंगलसूत्र जैसे सांप बन बरसो से डंक मार रहा,
जहर फैलता रहा पर सब कुछ वो सहती रही,
आज वो कोपित है और प्राण हरने को सभी व्याकुल है,
मर्दों में क्यूं दर है लगता है नारी जागी है।

नारी की महानता कैसे कोई मर्द पहचाने ,
अंतरात्मा लज्जित मर्द सिर्फ बिस्तर की भूख जाने,
कुचलने को तप्तर ऐसे मानो जैसे मिट्टी का खिलौना,
खेल के तोड़ना और वापस जुड़ने का इंतजार करना,
है निशान अनगिनत पर मर्यादा के साड़ी पहन छिपाती है,
मुख जो शब्द बोले थप्पड़ से चुप हो जाती है,
अब ज़ख्मों ने एक बगावत का रूप लिया है,
बहते रक्त से क्या तेजस्वी अभिषेक किया है,
मानो आज काली जीव निकाले रक्त की प्यासी चली है,
भाग रही मर्दजात क्योंकि आज नारी जो जागी है।

इतिहास के पन्नो पे जिक्र है नारी अपमान,
ना जाने कैसा खोखला यह मर्दों को अभिमान,
चीरहरण से लेकर पवित्रा साबित होने को लज्जित हुई मां सीता और द्रौपदी का अभिमान,
सर झुकाए और आंसू रोए कैसा यह दृश्य अनुचित और अनुचित व्यवहार,
विकट सब समस्या आती तो लेती देवी कई रूप,
कभी दुर्गा कभी सती मार्गदर्शक देती जैसे अंधेरे को उजाला करती धूप,
मंदिरों में रखे पत्थर को पूजा देवी मां का मांगे आशीर्वाद,
जूते से रौंद दे वही देवी का रूप,
अब क्षमायाचना क्या बचाएगी और आंसू क्या उम्मीद देगी,
अब तलवार को धार लगा चुकी है,
क्योंकि आज नारी जो जागी है।

समय बदल रहा और घनघोर नाद आगमन का हो रहा,
हुंकार ऐसा बवंडर जैसे नीव मकान का हिला रहा,
खुले बाल और मांग में मिटा सिंदूर,
आज भेट चढ़ाने को देखो कैसे नारियों का रुद्र रूप आ रहा,
यह दृश्य देख मर्दों का जैसे हृदय गति धीमा हो रहा,
आश्चर्य क्यूं है पापी तेरे ही कर्मो को फल मिल रहा,
अस्मिता जिसकी तूने भंग की आज उसके अंदर ज्वाला है,
शांत समुंदर में उठा जैसे ज्वारभाटा है,
अब तो अंधेरे में उजाले क्यों खोज रहा ,
मिट्टी की और देखकर आसमान में क्या खुदा खोज रहा ,
अब रक्त बहेगा तो तेरे प्राण नरक को रवाना होंगे,
भागो री भागो है दुष्ट मर्दों की आज नारी जागी है।

वर्षो ने जाने किस मोन अवस्था में बातें छिपाए है,
नारी वो असीम भावना हर पीड़ा को पी जाए है,
सिंह की सवारी करती मां जगदम्बे है,
एक मर्द रुद्र काली को रोकने खुद रास्ते पे सोए है,
क्यों करता है हत्या एक पैदा होती कन्या का,
खोजने पे कम न पर जाए कन्यापूजन दुर्गा पूजन पर,
आज तेरे हर बातों का हिसाब होगा,
हया का आंचल छोड़ अब तेरा रक्तपान होगा,
आज इतिहास की पन्नो में एक नई कहानी होगी,
लिखित जो बातें होगी क्योंकि आज नारी जागी है।

है मूर्ख मर्द आरती से पत्थर पूजे है,
घर की औरत में देवी तुझे क्यों नही दिखे है,
तेरे वंश की जो आगे बढ़ाती है,
मुस्कान ला के एक दर्द से सबको खुशियां देती है ,
बैठ घुटने पे आज और कर सम्मान,
छोड़ दे अब किसी औरत का करना अवेलना,
आएगा ऋतु एक बारिश बन सावन पे झूला लगा,
सम्मान कर और तिलक कर क्यूंकि आज नारी जो जागी है।

.     .     .

Discus