छनभर में जिसका संसार लूटा, मंगलसूत्र से लेके मांग मिटा,
करवाचौथ की थाली यूंही गिर गई, जब अर्थी पे आता चांद दिखा,
ना वो चीखी ना वो चिल्लाए, बस गुमशुम में छुपा एक तूफान बसा,
देख अचानक अपने प्रियतम का शव, पल में उसके मुस्कान का भाव बदला,
देख के वो रोना, उसका भी अक्श बहा, चूड़ियां तोड़ती उसका कोई तब जाके उसे विधवा का एहसास हुआ,
वो सुर्ख आंखों से मां भी सदमे में , आखिर आज सख्त पिता का कंधा झुका,
ऐसे वीर देश शहीद का गाथा भला तुम क्या ही जानोगे, तुम क्या जानोगे ?

बंद कमरे में वह रातें गुमशुम सी , आँखें एक दर्द से छिटकनी की और देखती है ,
मन व्यथित है एक शौषण की याद है , वह बलात्कार की घटना अभी तक जीवित है ,
वह सहमी हुई कभी एक पिता की लाड़ली थी, अब वह बिलखती एक जिन्दा लाश है,
न्याह हो गया सजा भी गुनगारों को मिल गया , पर क्यों यह समाज आज इसे नहीं अपनाता है,
गलती क्या उस मासूम की थी या इस समाज की, तुम इसे अपने हिसाब से ही तोलेंगे,
वह दर्द वह मासिक व्यथा , आखिर तुम क्या जानोंगे , आखिर तुम क्या जानोंगे?
क्या यह श्राप है एक नारी होना , दहेज के नाम पे अग्नि में जलना ,
मर्यादा के साड़ी पहन के ज़ख्म छुपाना , आवाज़ उठाने पे थप्पड़ से चुप होना ,
कुलदीपक का श्रेय क्यों एक मर्द हो , जब राज्य बचाने को घर में झाँसी की रानी हो ,
मुस्कुराहा के कहना ससुराल अच्छा है , मायके न जाने का बहाना देना ,
सब को मिला के चलने वाली फिर भी सब चुपचाप सारा ज़हर पीती है ,
तुम एक मर्द छोटे से बात पे डर जाते है , एक माँ , बेटी , पत्नी जैसे अनेक रूपों को तुम के समझोगे ?

महात्मा के देश में सच को ताले लगे , झूठ को ना जाने कितने गवाह मिले है ,
मंदिर मिटे मस्जिद टूटे , अपने धर्म को आगे करने न जाने कितने दीपक बुजे है ,
यह देखो चारो धर्म के नेता कमरे में मिले , यह देखो शराब और शबाब आये है ,
कब समझोगे रख्त का रंग लाल होता है , सर उठा के आसमान देखो वह नीला अंबर एक है ,
कब झंडे का मुल्ये समझोगे , आखिर त्यौहार के दिन ही एकता दिखाओगे , यह बात कब समझोगे ?

खुद के देश के खिलाफ कैसा आंदोलन , नोजवानो के नस में यह कैसा बहाव ,
स्वदेशी सभ्यता का इनको ज्ञान नहीं , विदेशी पर इतना अभिमान कैसे सही ,
कही किसी के रंग-रूप पे हँसी , किसी के मजबूरी पर यह कैसी हँसी ,
अपनों के खिलाफ तुम कैसे खड़े , एक प्यार के लिए अपनों से लड़े ,
कानून के यह कैसे न्यायम , नाबालिक कैसे जब वह करे अपराध बड़े ,
जो सच बोले देश को जोड़े , अख़बार में अगले दिन मौत के खबर छपे ,
ऐसे अन्याय को कैसे रोके , आखिर यह बिखरता हिंदुस्तान को कैसे रोके ,
थोड़ी समझदारी का ध्यान खोलो , थोड़ी सी बात समझो , थोड़ी सी बात समझो।
शहीदों को लेकर यह कैसी बहस , कोई भगत सिंह अपना तो कोई करे आंबेडकर पे जताये हक़ ,
हमारा जात महान , हमारा राष्ट्र महान यह कैसी जंग , जब देश को आज़ाद के लड़े थे सारे शहीद बन के एक जान, ,
वह भी आसमान से रो रहे होंगे आपस में बात कर रहे होंगे , ऐसे ऐसे लोगो के लिए हमने आज़ादी के लड़े यह सोच रहे होंगे ,
बलिदान की कीमत आखिर तुम कैसे जानोंगे , देशभक्त होना आखिर तुम क्या जानोंगे?

बंध परिंदा कैसा जिम्मेदारिओं के बोझ से फरफराये , खुद से अनसुना बाहर में खुशियाँ ढूँढे ,
थका हुआ बदन बस काम से वापस आये , अपने सपनो को जगा के फिर सुबह भूल जाये ,
शायद हम खो गए इस संसार के भीड़ में , कुछ पाने के लिए खुद को भूल कर,
हंस के लोग बस व्यंग करते है , इनकी ज़िदगी की व्यथा तुम क्या जानोंगे ?

जब कड़ी धुप में पसीना जब सूखता है , तब जाके घर- घर अनाज आता है ,
जोड़ -जोड़ के ईंट से भवन बनता है , वह खून पसीना मजदूरों का लगता है ,
बदले में हमने क्या किया , उनको न उचित दाम दिया और न ही सम्मान दिया ,
जब वह हक़ मांगने हरतालों पे उतरे ,तब तुमने उसके हक़ का बहिस्कार किया ,
अब जब फांसी लगी उनकी आत्महत्या खबरों में आई , तब तुम्हारे अंदर एक दया जगी ,
क्या फायदा जब अन्न देवता ही नहीं रहे , उनके मेहनत की कीमत तुम क्या दोगे , तुम क्या दोगे ?

लाँछन लगना किसी के ईमानदारी पे , जैसे आत्मविश्वास घायल होने का ,
पढ़ लिख के आँखें लाल कर , आज अनपढ़ो की सेवा करना ,
मजबूर यहाँ कानून और यह सेवक , कुछ तो नौकरी लेके देखे दहेज के सपने ,
सर पे झंडे का चित्र और सत्यमजेव जयते का आवाज़ , फिर क्यों कमजोर जब दिखे पैसो का सैलाब ,
बिक गए तुम बिन सोचे अपने जवानी के जोश को , माथा पीते गरीब तुम्हे क्या फर्क परता है ,
यह समाज यह लोग नहीं समझेंगे , तुम भी उसी जगह जा रहे आखिर तुम्हे कौन ही रोकेगा ?

और अंत में
बेफिक्र चल , हृदये में अनल अग्नि जला , मशाल रौशनी से अंधकार को दूर कर ,
जवाब दे इस तुम जानो का , बढ़ आगे प्रेरणा ले उन शहीदों के बलिदान से ,
अब मुख नहीं हृदये में सत्यमेव जयते का हुंकार होगा, अब एक नए हिंदुस्तान का निर्माण होगा। 

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