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विभाजन से न सिर्फ मुल्क जले , अपने भी और उधर भी रोये
वो दर्दनाक लम्हा तुम्हे कैसे समझाऊं,
अपने कलम से यह दास्तान कैसे लिखूं,
कैसे विभाजन से बांट गए मां को,
यह रोदन का पीड़ा कैसे चुप कराऊं।

चिंगारी से जलते थे घर के चूल्हे,
अंधे होकर वह मशाल से फूकते मकान,
कोई अनाथ हुआ तो कोई विधवा,
आबरू लूटे और इंसानियत की नहीं चिंता।

दर्द वो ऐसा मौत का तांडव जैसा,
नंगी तलवार और पग पग में नरसंहार दिखता,
कुछ कंधे पे बच्चों को लेके भागते,
लाहौर से आई रेलगाड़ी में अपनो का लाश ढूंढते।

अपने ही देश में अपनो से डरे बैठे,
एक फैसले से अपनी जायदाद छोड़ते,
हाथ जोड़ते मिन्नते करते,
पर धर्म के अंधे किसी का कहां सुनते।

यह झंडा एक हरा दूसरा था केसरिया,
डर के साए में कोई घर में दीपक नहीं जलते,
कही जलती मकाने तो कहीं जलते जिंदा इंसान,
आंख के बदले आंख और देश के बदले देश का विचार।

आंखें बंद करके चिंता व्यक्त करते राजनेता,
वो सुरक्षित बैठे भवन में जनता करे देश की चिंता,
में नही जाना यह मेहनत की कमाई छोड़ के ,
नही जाना वो खेत खलियान को सुखा छोड़ कर।

धर्म और साम्प्रदायिकता के मिलान से लोगो से खेला ,
राजनेताओं ने कुर्बानियां भूल सरहद पर एक लकीर खींचा ,
नरक क्या उनकी ज़िन्दगी हुई नहीं पर हमारी भेंट चढ़ी ,
मौत के इस नाच से बस हमारी आबादी बर्बाद हुई।

समझ देश की खाक कहकर थूका ,
लालच और घृणा से उस खेत को सींचा ,
जब पक गयी फसल तो काट डाला ,
जब आयी बारी तो हर धर्म में बाँट डाला।

शहरों में न दया न गांव में कोई ठहराव ,
जब कोई आवाज़ आती , तो कपकपाती प्राण ,
त्राहि का नाच और शरण को नहीं कोई स्थान ,
शहरों में कहर पड़ा है और ठांव नहीं गांव में,
कहीं कोई चीखे कही कोई बचे ऐसे में विचलित हर इंसान।

क्या यह स्वराज का सपना था ,
अपनों से लड़ना था ,
बलिदान को व्यर्थ करना था ,
तो फिर हमें आज़ाद ही क्यों होना था।

बहा था मेरे भाई का रक्त,
लाल हुई ममता का हृदय ,
चीख के बताई सब के रंग लाल,
वह देखो तुम्हारी बहन भी पड़ी लहू -लुहान।

क्या हम समझते है खुद को इंसान ,
समझते जानवरों को अपने से अलग ,
अलगाव के इस माहौल में पनपे कितने सांप ,
अपनों को काटे और अपनों से रोंदे अपने आप।

मिलन को तड़पते जो उस वक़्त बिछड़े ,
हर रात खवाब में हम अब उन्हें ढूंढ़ते ,
चीख लगाता आएगा मेरा वह उस पार का दोस्त ,
साथ चलेंगे मेले में पर सब मिटाया बरबाद किया इस एक विभाजन का दोष।

कुछ मंज़िल को पा लिए ,
हरे झंडे में गुरूर को ,
कुछ केसरिया के सुरूर में ,
डाला कब्र में बस एक इंसानियत को।

क्या गीता ने सिखाया युद्ध करना ,
कुरान ने बताया कत्लेआम मचाना ,
क्यों सीख मरे क्यों मरे कुछ मुस्लमान ,
न इधर ख़ुश हिंदुस्तान और न उधर पाकिस्तान।

किस इतिहास को ब्यान करते है ,
गर्व करते तो विभाजन को याद करके क्यों रोते है ,
सच है क्या फिर झूठ को क्यों चुनते है ,
कहते है शहीदों को बस दिवस पर याद करते हैं।

अखंड भारत का स्वप्न था ,
सब साथ रहेंगे यह एक वचन था ,
विभाजन सुनते ही भागम -भागी थी ,
हर तरफ माहौल दानवी थी।

पूछो उन माताओ से जिनकी ममता लूटी ,
लाज गया , आबरू गयी , तार -तार यह इंसानियत हुआ ,
कुछ के मांग उजड़े , किसी ने अपना सब खोया ,
आज भी गूंजती और तड़पती आवाज़ शम्शानो में।

घाव देख वह भाग जाते , अग्नि से आपस में जलते ,
राह पता उस पार का , पर पग -पग बिछा आतंक सा ,
पूछते है किस और जाए , किसका धर उठाए किसका कंधा ले,
कुछ मेहनत की कमाई तो कुछ अपने खो गए दंगो के साथ।

देखते रह गए नेहरू, तो कही महान नेता,
एक छोटे से दरार ने एक खूनी इतिहास रच डाला,
अब हंसते है वो जिससे हमने आजादी पाई थी,
क्या आजादी के बाद ऐसे जिंदगी की सपना सजाई थी।

क्या जो मुस्लमान उस पार गए उनकी इच्छा थी,
क्या जो इस पार आए क्या यह उनकी आशा थी,
क्या मस्जिद तोड़ मंदिर बना, और मंदिर तोड़ मस्जिद,
ऊपर बैठे शिव पूछे अल्लाह से यह कैसी व्यथा जब सबका मालिक एक।

देखा यह कैसा अलगाव था,
स्त्री स्त्री के खिलाफ, मर्द मर्द के खिलाफ,
अपने कोम की लड़ाई थी, लाशों की नही गिनती थी,
अलगाव यह अलगाव सत्य से सत्य का यह विभाजन थी।

बहती थी नदी चुपचाप हर धर्म को नहलाती थी,
सलीम और समीर के बीच खूब बातें होती थी,
मजहबी लड़ाई नहीं बस आजादी पाने की एकता थी,
लहर ऐसा सत्य का की अंग्रेज की बोलती बंद होती थी।

सोने की चिड़िया थी , हर चूल्हे में मां रोटी बनाती थी,
ममत्व में वो पूरे मोहल्ले में खाना खिलाती थी,
मुर्गे के बांग हर सुबह हर धर्म को जगाती थी,
चल पड़ते घर से सुबह आजादी पाने की जो तैयारी थी।

पर ना जाने कैसा यह सैलाब आया,
वही चूल्हे में किसी ने चिंगारी से घर जलाया,
वही समीर , वही सलीम आपस में हथियार उठाया,
उसी मीठी नदी को लहू के रंग से करवा बनाया।

जो चलते थे साथ में अब वो अलग दिशा में चले,
एक हिंदू कटे तो एक मुसलमान ज़िंदा जले ,
दो धर्मो के लड़ाई में सिर्फ और सिर्फ राजनीती हँसे ,
अब आ गया वक्त एक चिराग दिल में जलाना है,
अंदर से खोखले हिंदुस्तान को बचाना है ,
अब बलात्कार में नाउम्मीद मोमबत्ती से काम नहीं चलाना है,
अब कभी गांधी कभी भगत बन कर एक बुनियाद ठोस बनाना है।

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