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सत्य का अंत हुआ रामायण के साथ ,
पिता के प्रेम और पुत्र धर्म के साथ ,
स्वामी भक्त हनुमान और भाईचारा के गाथा के साथ ,
अग्निपरीक्षा सीता माँ और रामराज्य अंत के साथ।

राजा थे राम तो रावण भी कम नहीं था ,
दोनों एक अपना अपना एक सिंद्धांत था ,
जय श्री राम बोलकर ही स्वर्ग मिल जाता था ,
ज्ञान की बात तो लक्ष्मण ने रावण से भी सीखा था।

जब हो रहा था त्रेता युग का अंत ,
तब हनुमान जी व्यथित थे ,
तब उलझा कर हनुमान को वह स्वर्ग गए थे ,
पर हनुमान जी को अमर होने का वरदान देके गए थे।

तब कृष्णा जी के साथ द्वापरयुग की शुरवात हुई ,
कंश के अंत के साथ एक द्वारका की स्थापना हुई ,
प्रेम के स्तम्ब का नाम अबतक पूजा राधे -श्याम हुई ,
गोपियाँ के प्रेम से रासलीला हर युग प्रचिलित हुई।

वीरो का जगह एक हस्तिनापुर था ,
पिता वचन से बंधित सिंघासन से वीर पितामाह था ,
धृतराष्ट्र के पुत्रमोह और शकुनि की बुद्धिमन्ता था ,
कौरव और पांडवो का आपस में एक विवाद था।

चौसर के खेल से लेकर द्रौपदी का चीरहरण देखा ,
भीम का १०० कौरवो को मारने का वचन देखा ,
अधर्म के साथ खड़े वीरो का दुखदायी अंत देखा ,
अभिमन्यु के मृत्यु पे सारा युद्धभूमि शोकाकुल देखा।

जब गीता का उपदेश हुआ , तब कृष्ण जी ने कलयुग बताया ,
न होगा मान न होगा कोई भाव , होगा बस चारो तरफ पाप ,
गाय का सम्मान नहीं , अधर्म का रास्ता सही है ,
पूजा पाठ का ध्यान नहीं , मात -पिता का सम्मान नहीं।

ईमानदारी की बस्ती में आग लगती ,
बेईमानो के घर मेहेंगी शराब जाती है ,
धर्म के नाम पे आपस में दंगा करवा रहें ,
राजनेताओ के चाल पे जनता फंसी जा रही।

सोशल-मीडिया पे बहता दया का सागर ,
असलियत में बस अपने आप से मतलब ,
विदेश के विचारो में घमंड दिखाते है ,
इतिहास के अनजान स्वदेश को निचा समझते है।

कहते है लहर चली थी ,
उम्मीदों की एक दीपक जली थी ,
पैट यह क्या मेहगाई बढ़ी और बेरोज़गारी बढ़ी ,
टैक्स की आंधी और पैसो की लूट मची।

अपने वर को चुनते खुद ,
नारी का हक़ का दिखावा करते खुद ,
जात -पात , अमीर गरीब का खेल दिखते अब ,
वृद्ध माँ -बाप पे हाथ उठाते उनके बच्चे अब।

युवा पीढ़ी नाचती है रील्स पे ,
नंगपान से मांगते सम्मान वे,
कहते है मेरी ज़िन्दगी मेरी है ,
पर क्या वह क्रन्तिकारी युवा की मूर्खता थी।

किसान के लिए यह कैसा न्याह ,
एक साथ में एक अलग यह कैसा गन्दा खेल ,
हिन्दू त्योहारों में गाय का मांस किसने फेका ,
मुसलमानों के बीच आग किसने फैलाया।

इस युग में साडी सीमा पर हो रही ,
मेहनती को पैसे वाले से हार मिल रही ,
प्रेम में अंधे देश को भूल गए है ,
नशे में धुत अपने जिम्मेदारी भूल आगे है।

प्यार अब कमरों में होता है ,
वॉलेट के वजन के पाय का सीमा तय होता है ,
सब अपनी जगह पाने के लिए घूसखोरी करते है ,
पैसे खिला के तो अब पुरस्कार भी खरीद लेते है।

कटघरे में कितने साल तक यह न्याह चला ,
बलात्कार के नाम पे सच झूठ का वक़ालात चला ,
लांछन लगे उस लड़की पे उसके दोस्तों पे ,
पर जब सजा मिली तो भी अब वह छूट गए।

दंगे होने लग गए अपनी ताकात दिखाने में ,
कौन सा कोम अच्छा यह बताना युद्ध से ,
सर उठा के देखो तो आसमान नीला है ,
रख्त बहे जिस और पर हर जगह लाल है।

क्यों नज़र नहीं जाती बेरोज़गारी पे ,
मसला बनता जब कोई करता खुदकशी फांसी से ,
हर जगह हर चैनल पे एक दूसरे को दोष देते ,
मंदिर हो अपना न हो मस्जिद ऐसे बातों पे लड़ते।

पूछा हमने किसी से क्या है तुम्हरा सपना ,
कहते राम राम जपना पराया माल अपना ,
पूछा एक अधिकारी से आगे क्या करना ,
तो बोला अच्छी लड़की देख के दहेज लेना है।

क्या यही कलयुग की शरुवात है ,
कम उम्र में बस विलास है ,
अधर्म का यह कैसा राज्य है ,
मुश्किल में पूरा समाज है। 

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