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मैं बैठी एक दिन
यह सोच रही कि
'हैं कितनी यह हसीन जिंदगी...
दिखा देती रंग कई
लोगों के हज़ारों ढंग कई
किसी दिन जब रो रहे होते
सोच रहे होते कि
क्यों जी रहे यूँ घुट - घुट के
जब सब लगे बिखरा हुआ
और न दिख रहा होता कोई रास्ता
जभी अचानक से कुछ ऐसा होता
कि मानो कोई चमत्कार हो...
ख़ुशी इतनी की फिर सेहम जाते,काँप उठते
क्यों?
क्युकी क्या पता कब यह दिन वापिस घूम हो जाए
छुप जाए उन पर्दो के पीछे जिन्हे हम शायद कभी वापिस न ढूंढ पाए|

पर क्या सही में कसूर इस जिंदगी का?
कि हर गाने में, हर किताब में, हर शायरी में कोसते इसे
जब पता है हमे की
जिंदगी तो एक सफर है
जिसका सफरनामा हम तय करतें
जिंदगी तो एक बहाना है
जब असल में सबका कारण
यह इंसान और उसका यह जिद्दी दिल है
जिसे हमेशा अपना ही कहा मानना हैं|

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