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हर तरफ धुँए का गुब्बार है, ये कैसा हाहाकार है
कर्ण पटल को विचलित करता, ये कैसा शोर है
अश्रु की नदी में बहता हुआ ये देश किस ओर है
इंसा इंसा को नही समझ पा रहा, ये कैसी होड़ है
कोई झुकने को तैयार नही, ये कैसी सरकार है
हर तरफ धुंए का गुब्बार है, ये कैसा हाहाकार है

मृत्यु का तांडव देखकर हर कोई निःशब्द है
ऐसा मंज़र देखकर, हर एक व्यक्ति स्तब्ध है
हार जीत का कैसा खेल खेल रहा भाग्य है
मौन हो गई दुनिया सारी, ये कैसा विकार है
हर तरफ धुएं का गुब्बार है, ये कैसा हाहाकार है

भयभित है हृदय का हर कोना, बमों की बौछार है
संसार के बाजार में इंसानियत का ये कैसा व्यापार है
जीवन का कोई मोल नही, कीमत चुकानी हर बार है
एक विचित्र ध्वनि की हुंकार से युद्ध की ललकार है
हर तरफ धुंए का गुब्बार है ये कैसा हाहाकार है

इंसान की इंसानियत से ये कैसी लड़ाई है
बच्चा बच्चा पत्थर फेंक रहा, किसने ये सीख सिखाई है
रक्तपात हो रहा अपनों का, ये किसने मति फिराई है
बस असमंजस के चक्रव्यूह में चारों ओर से घिरा है
हर तरफ धुंए का गुब्बार है, ये कैसा हाहाकार है

हर कोई अपने आप से अंदर ही अंदर लड़ रहा है
न जाने देश में ये कैसा गृहयुद्ध चल रहा है
विहल मन खिड़कियों के अंदर से झाँक रहा है
निनाद की आवाज़ गूंज रही हर ओर है
हर तरफ धुंए का गुब्बार है ये कैसा हाहाकार है

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