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पिता की छत्र छाया बरगद के पेड़ सी होती है
जिसकी ठंडक हर मौसम में एक जैसी होती है
जब भी मुसीबतों की प्रचंड गर्मी हमें सताती है
हमें सबसे पहले उनकी याद आ जाती है
जब भी सर पर परेशानियों के बादल घिर आतें है
हम उनकी छतरी के नीचे खुद को महफूज़ पाते है
जुबां से निकली बात बोलने के पहले क़ुबूल होती है
पिता की छत्र छाया बरगद के पेड़ सी होती है
जिसकी ठंडक हर मौसम में एक जैसी होती है
जब भी हमारे मन मे इच्छाओं की तरंगे उठती है
उनका हाथ सहारा बनके हमारा हाथ थामती है
हम उनके मार्गदर्शन से कठिन रास्ते पर चलते हैं
प्रबल दृष्टिकोण से आसानी से मंज़िल तक पहुंचते है
जिसके कठिन परिश्रम से हमारी ज़िंदगी सुधरती है
पिता की छत्र छाया बरगद के पेड़ सी होती है
जिसकी ठंडक हर मौसम में एक जैसी होती है
जब भी ज़िंदगी हमे अकेलेपन का एहसास कराती है
उनकी मौजूदगी दिल को सुकून दिला जाती है
भले ही वो अपने प्यार का दिखावा नही करते है
पर हमें अपनी जान से ज़्यादा संभाल कर रखते है
जिनके निःस्वार्थ प्रेम से ज़िंदगी संवर जाती है
पिता की छत्र छाया बरगद के पेड़ सी होती है
जिसकी ठंडक हर मौसम में एक जैसी ही होती है
जो लोग इस छत्र छाया की क़द्र नही करते है
वो दुनिया में ख़ुद को कहीं महफूज़ नही पाते है
जिनपर पिता के आशीर्वाद का साया नही होता है
उनको हर कदम पर तपती ज़मीन ही मिलती है
बस मुझे भगवान से यही विनम्र निवेदन करना है
ईश्वर के इस आशीर्वाद को संभाल कर रखना है
क्योंकि पिता की छत्र छाया बरगद के पेड़ सी होती है
जिसकी ठंडक हर मौसम में एक जैसी ही होती है

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