कृष्ण ने दोस्ती निभाई थी....
एक वो युग था जब मेरे कृष्ण ने दोस्ती निभाई थी
सुदामा को गले लगाकर हमें एक सीख सिखाई थी
जब सुदामा मेरे श्री कृष्ण के द्वार पर पहुंचे थे
उनकी हालत देख हर कोई वहाँ पर हतप्रभ थे
जब कृष्ण को पता चला वह बेसुध होकर दौड़ पड़े
सुदामा को गले लगाया आँखों से अश्रु बह चले
ऐसा दृश्य देखकर रानियाँ भी चकित हुई
यह कौन आ गया है सोचती ही रह गई
सुदामा की हालत ऐसी थी की क्या कोई बतलाये
न शरीर पर वस्त्र पहने और न चरण में पादुकाएं
पर कृष्ण ने अपने मित्र का ऐसा मान बढ़ाया
सबसे पहले मेरे कृष्ण ने उनको सिंघासन पर बैठाया
अपने आंखों के आंसुओं से उनके पाँव को धो दिया
पाँव के छाले देखकर उनका भी मन द्रवित हुआ
हाल चाल सब पूछकर भोजन आदि करवाया
फिर श्री कृष्ण ने मित्र से पूछा क्या भेंट हो लाये
चावल की पोटली हाथ में देकर सुदामा जी शरमाये
श्री कृष्ण ने भेंट स्वीकार करी और चावल के दाने खाये
अमीर ग़रीब का भेद मिटाकर दोस्ती का रिश्ता निभाया
एक सच्चे मित्र की तरह अपने मित्र का साथ निभाया
सिर्फ दोस्ती ही वह रिश्ता है जो हृदय से जुड़ता है
कौन किस पद पर है क्या फर्क पड़ता है
आज बहुत मुश्किल है ऐसी दोस्ती निभा पाना
किसी भी ग़रीब को अपना दोस्त बता पाना
इस युग में हर रिश्ता भेद भाव से लाचार है
आज की व्यवहारिकता देखकर भगवान भी दंग है
क्या यही वो सीख है जो मेरे श्री कृष्ण ने सिखाई थी
एक वो युग था जब मेरे कृष्ण ने दोस्ती निभाई थी
सुदामा को गले लगाकर हमें एक सीख सिखाई थी