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ज़मीन के चंद टुकड़ों के लिए लड़ रही है ज़िन्दगी
न जाने कौन से अजीब रास्तों पर चल रही है ज़िन्दगी
अपने ही अपनों की जड़ों को काट रहे हैं
दीमक की तरह एक दूसरे को खोखला बना रहे हैं
सब कुछ यहीं इसी ज़मी पर रह जाना जाना है
माटी के पुतले को इसी माटी में मिल जाना है
फिर भी सब आपस में अड़े और लड़े जा रहे हैं
अंदर ही अंदर घुट घुट के जिये और मरे जा रहे हैं
ज़मीन के चंद टुकड़ों के लिए लड़ रही है ज़िन्दगी
न जाने कौन से अजीब रास्तों पर चल रही है ज़िन्दगी
एक दूसरे की खुशियों से जलने में इतने मशरूफ़ हैं
सही और ग़लत की समझ से कोसों मील दूर हैं
बस अपने हक़ के लिए किसी भी हद तक जाना है
चाहे इसके लिए रिश्तों को बलि ही क्यू न चढ़ाना है
प्रेम दया करुणा ये भाव जीवन में क्या मायने रखते हैं
बस अब इस लड़ाई में हर एक भाव को मिटाना हैं
ज़मीन के चंद टुकड़ों के लिए लड़ रही है ज़िन्दगी
न जाने कौन से अजीब रास्तों पर चल रही है ज़िन्दगी
कभी सोचा है कि विरासत में क्या छोड़ कर जा रहे हैं
अपनेपन की जगह अकेलापन देकर जा रहे हैं
ऐसा न हो चंद टुकडों में ज़िन्दगी सिमट कर रह जाए
आज जो बो रहे हैं कल ख़ुद ही न काट पाए
इससे पहले की समझने में बहुत देर हो जाए
चंद रुपयों के लिए ख़ुद की काबिलियत ही भूल जाए
ज़मीन के चंद टुकड़ों के लिए लड़ रही है ज़िन्दगी
न जाने कौन से अजीब रास्तों पर चल रही है ज़िन्दगी

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