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सरल स्वभाव नमन कुटिलाई जथालाल संतोष सदाई।यह ज्ञान उत्तम मनुष्य को ही प्राप्त होता है। क्योंकि 8400000 योनि में सबसे उत्तम योनि मनुष्य जॉनी है।। इसलिए तुलसीदास जी कहते हैं कि बड़े भाग्य मानुष तन पाब ।।

क्षितिज, जल, पावक, गगन समीरा पंचतत्व यह अधम शरीरा।

फिर इस नश्वर ओर अधम शरीर को वर्तमान युग में जरूरत से ज्यादा महत्व दिया जाता है क्यों ? शरीर की इच्छा आकांक्षाओं की पूर्ति करते करते इंसान कब अपना अनमोल समय व्यर्थ गवाह देता है का एहसास तो तब होता है जब जिंदगी किनारे लग जाती हैं।

तब तो यही कहेंगे ना कि अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।

आधुनिक युग में हर वर्ग के लोग विशेषकर मध्यम वर्गीय परिवार सुख समृद्धि के पीछे भाग रहे हैं अपने बच्चों की हर छोटी बड़ी आकांक्षा को पूरा करने में गर्व महसूस करते हैं फल स्वरूप इच्छा और आवश्यकता कब विस्तार रूप में सुरसा की तरह मुंह फैलाता है पता ही नहीं चलता। कुछ समय पहले तक अभिभावक एवं मां बाप यह बचपन से ही शिक्षा देते आते थे कि "जितना चादर हो उतनी पैर फैला नी चाहिए"।

पर आज के अभिभावक में खुद ही संयम का अभाव है वह क्या ज्ञान देंगे अपने बच्चों को। सावधान! मोह माया में पढ़कर धृत राष्ट्र ना बन जाना क्योंकि इतिहास गवाह है दुर्योधन के उच्च आकांक्षा ही खुल के सर्वनाश का कारण था कहते हैं ना- विनाश कालेन विपरीत बुद्धि इसलिए करंट लगने से पहले सतर्क हो जाएं। आज समाज और राष्ट्र का उत्थान तब होगा जब परिवार इस पर गौर करते हुए बचपन को मर्यादित करें परिवार का ही दायित्व है अपने बगिया के फूल कि सही देखभाल करें।

अगर सही मार्गदर्शन ना हुआ तो?"घर का चिराग जला देगा घर आने को हतप्रभ रह जाएंगे, अंगूठा दिखा देगा बुढ़ापे को। वर्तमान युग में परिवार समाज और राष्ट्र खतरे में पड़ा सब का भविष्य हम सब मिलकर हम सब मिलकर संकल्प ले की

इंद्रियों के ना भूले भटके कभी मगर भटके तो संगम के घोड़े पड़े

और अनुशासन अभ्यास परोपकार और अनुशासन अपने बच्चों का चरित्र का निर्माण करें स्वयं की प्रधानता कामयाबी पर है।

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