अरे! अपना टिफिन तो लेते जाना। छाया बेटे हर रोज टिफिन भूल जाती हो। बेटे अब एक नन्हा मेहमान भी आने वाला है। "खयाल रखा करो" कह के मां ने टिफिन दिया और घर का दरवाजा बंद किया।
"छाया" मासूम सी, लेकिन थोड़ी शरारती , ज़िद्दी भी लेकिन सबकी लाडली। सिर्फ दस बरस की। बड़ी बहादुर, उसे रास्ते से अकेले चलना पेड़ो पे बैठे परोंदो से बातें करना, अपनी ही धुन में गुनगुनाते चलना, अटखेलिया मचाना और बारिश के पानी को पैरों से उछालना बहुत पसन्द है। जानवर उसे भाते थे वो उनके साथ घुल मिल कर खेलती थी।
"मैं" हर रोज उसके कदम से कदम मिला कर उसके साथ चलती थी। मुझे भी अब वो भाती थी। नादान थी। मां से जिद्द कर वो एक रोटी मेरे लिए भी ले आती थी।
हर रोज की तरह स्कूल जाना , शाम को ट्यूशन और रात को अपने मां के साथ पार्क घूमना, बस इतनी ही उसकी सिमटी सी दुनिया थी।
वो रात, वो रात "मैं " आज तक नही भूली। 12 बज रहे थे।
अंधेरा था, सुनसान रास्ता, छाया ने अपनी मां का हाथ कस के पकड़ा था और वो दोनो सहमे सहमे से चल रहे थे। मानों कोई उनका पीछा कर रहा हो।
"मैं ने कुछ कदम आगे जाके देखा के 4 दरिंदे उन्हें घूर रहे थे। उसमे से एक नालायक ने तो मां का आंचल खींचा। मां ने अपना आंचल छाया पे रखा।लेकिन उन चारों ने उन्हें घेर लिया था। दूसरे लड़के ने छाया को अपनी ओर खींच लिया, छाया डर के रोने लगी। मां ने बचाओ बचाओ चिल्लाया,
तीसरा बदमाश बोला। अरे जानेमन डरो नहीं आओ ना पास आओ यहां हमारे अलावा कोई नही आयेगा तुम्हें बचाने।
यह लड़के शायद इंसान थे ही नही। भूखे भिड़ियों की तरह उनकी नजरें इन दो जिस्मों को नंगा कर रही थी।
छाया की मासूम कलाईयां बांध दी गई, एक एक कर उन चारों ने छाया के सर से पाऊं तक उसे नोंच नोंच खाने लगे। और इससे भी जी ना भरा तो उस मासूम को अदमरी हालत में छोड़ कर उसकी मां के साथ भी वही सब किया।
छाया की मां 7 महीने से गर्भवती थी। लड़ी झगड़ी लेकिन हार गई, यह दर्द उस से सह न गया और उसने दम तोड दिया।
वो दरिंदे वहा से चले गए।
छाया दर्द से करहाने लगी, गीली आंखें शाख के पत्तों की तरह रिस रही थी।
मां की लाश उसे दूर पड़ी थी। घसीटते घसीटते वो अपनी मां के पास जाके गले से निपट कर रोने लगी। न कोई आया ना किसीने यह सिसक सुनी।
लेकिन उस रात यह सब मैं ने अपनी आंखों से देखा था।
हा इस हादसे की मैं इकलौती चश्मदीद गवाह थी। मेरे दो हाथ पैर तो नही लेकिन मेरी आँखें थी जिसने यह सब मेहसूस किया था। हां मैं, मैं वही सड़क जिसके किनारे यह हैवानियत हुई थी।
मैं ने आज तक इंसानों से कोई शिकायत नहीं की, के वो मुझे रोंदते है मुझे कुचल के मुझसे होके अपनी मंजिल पाते है। नही की कोई शिकायत। मैं एक सड़क।